पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३२१

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सुतीय कोशस्यान : लोकनिर्देश श्योंकि यह क्लेश और कर्म के आश्रय ( 3D अधिण्ठान) है। जो अंग वस्तु हैं वह फल हैं । पांच जो वस्तु नहीं हैं हेतुभूत हैं क्योंकि वह कर्म-क्लेश-स्वभाव हैं। प्रत्युत्पन्न भव के काण्ड में हेतु और फल का व्याख्यान विस्तार से क्यों है-क्लेश के दो अंग, कर्म के दो अंग, वस्तु के पाँच अंग- [६९] जव कि अतीत और अनागत अघ्न के लिये ऐसा व्याल्यान नहीं है । अनागत अध्व में फल को संक्षिप्त किया है। उसके लिये दो अंग हैं। अतीत अध्व में हेतु को संक्षिप्त किया है। एक मुख से (अर्थात् अविद्यामुख से) क्लेश का उपदेश है । २६ वी-सी. मध्य के अनुमान से हेतु और फल का दो भागों में अभिसंक्षेप है। प्रत्युत्पन्न भव के क्लेश, कर्म और वस्तु के निरूपण से अतीत अध्च और अनागत अध्व के हेतु-फल का सम्पूर्ण निर्देश नापित होता है । जो वर्णन निष्प्रयोजनीय है उसको वर्जित करना चाहिये। किन्तु यह कहा जायगा कि यदि प्रतीत्यसमुत्पाद के केवल बारह अंग हैं तो संसरण की आदि कोटि होगी क्योंकि अविद्या का हेतु निर्दिष्ट नहीं है ; संसरण की अन्त कोटि होगी क्योंकि जरामरण का फल निर्दिष्ट नहीं है । अतः नये अंग जोड़ना चाहिये और यह अनन्त कथा है । नहीं, क्योंकि यह गमित होता है कि भगवत् ने अविद्या के हेतु और जरामरण के फल को ज्ञापित किया है। फ्लेशावलेशः क्रिया चैव ततो वस्तु ततः पुनः। वस्तु क्लेशाश्च जायन्ते भवामानामयं नयः ॥२७॥ २७. क्लेश से क्लेश और कर्म की उत्पत्ति होती है, इनसे वस्तु की, वस्तु से पुन: वस्तु और क्लेश की। भवांगों का यह नय है।' क्लेश से क्लेश को उत्पत्ति है : तृष्णा से उपादान । क्लेश से कर्म की उत्पत्ति होती है : उपादान से भव, अविद्या से संस्कार। कर्म से वस्तु की उत्पत्ति होती है : संस्कारों से विज्ञान, भव से जाति । वस्तु से वस्तु की उत्पत्ति होती है : विज्ञान से नामरूप, नामरूप से पडायतन.... स्पर्ग से वेदना, जाति से जरामरण । वस्तु से क्लेश की उत्पत्ति होती है : वेदना से तृष्णा । अंगों का यह नय है। यह स्पष्ट है कि अविद्या का हेतु क्लेश या वस्तु है। यह स्पष्ट [४०] है कि जरामरण[ = विज्ञान से वेदना पर्यन्त शेप वस्तु, ऊपर पृ० ६५]का फल क्लेश है । यतः . फलहेत्वभिसंसपो तयोर्मयानुमानतः॥ फ्लेशात् क्लेशः क्रिया चैव ततो वस्तु ततः पुनः। [च्या २८८.१८] वस्तु क्लेशाश्च जायन्ते भवाङ्गानामयं नयः॥ व्या २८७.३४] शुमान् चा : "भवांगों का नय फेवल यही है।" संघभत्र इस 'केवल शर्म को टोका करते हैं। उनका कहना है कि इस शब्द से यह सूचित होता है कि भांगों कोसंख्या, मारह तक परिमित है।