पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३४२

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३३२ अभिधर्मकोश यह इन्द्रिय, विषय और विज्ञान इन तीन के संनिपात से उत्पन्न होते हैं। हम मानते हैं कि पांच रूपीन्द्रिय, उनके विषय और उनके विज्ञानों का संनिपात हो सकता है क्योंकि यह तीन सहभू हैं। किन्तु जब मनोविज्ञान (१.१७ ए) की उत्पत्ति होती है तब मन- इन्द्रिय या मनस् (मनोधातु) निरुद्ध होता है। इस मनोविज्ञान का विषय अनागत धर्म हो सकता है। तब त्रिक का संनिपात कैसे होगा?---कहते हैं कि संनिपात होता है क्योंकि मनस् और धर्म मनोविज्ञान कार्य के कारण हैं, अथवा क्योंकि इन्द्रिय, विषय और विज्ञान का एक ही कार्य है। तीनों स्पर्श की उत्पत्ति में प्रगुण होते हैं। स्पर्श का लक्षण क्या है ? आचार्य सहमत नहीं हैं। [९७] एक-सौत्रान्तिक-कहते हैं : स्पर्श संनिपातमात्र है। सूत्र के अनुसार : इन धर्मो की संगति, संनिपात, समवाय, स्पर्श है।' अन्य-सर्वास्तिवादी–कहते हैं : स्पर्श चित्तसंप्रयुक्त धर्म (कोश, २.२४. पृ० १५४) है। यह संनिपात से अन्य है । षट्षट्कसूत्र के अनुसार : "(चक्षुरादि) ६ आध्यात्मिक आयतन, (रूपादि) ६ वाह्य आयतन, ६ विज्ञान, ६ स्पर्श, ६ वेदना, ६ तृष्णा हैं।"-अतः सूत्र २६ आध्यात्मिक आयतन, ६ वाह्य आयतन और ६ विज्ञान के अतिरिक्त ६ स्पर्शकाय हैं। अतः स्पर्श धर्मान्तर हैं क्योंकि सूत्र में पुनरुक्त नहीं है । सौत्रान्तिक का इस सूत्र का व्याख्यान--यदि सूत्र में पुनरुक्त नहीं है तो वेदना और तृष्णा IMMEL विजानाति [निस्सन्देह यह कहा जायगा कि चक्षुविज्ञान से स्पर्शादि चैत्तसहगत विज्ञान समझना चाहिये। इन चैत्तों से इसका अवश्यमेव साहचर्य होता है।] | माउंग तिन अस्थसालिनी में स्पर्श का निर्देश पाते हैं : तिकसंनिपातसंखातस्स पन अत्तनीकारणस्स बसेन पवेदितत्ता संनिपातपच्चुपट्टानो फस्सो] = contact has coinciding as manifestation, because it is revealed through its own cause, known as the coinciding of three (basis [i. e. organ], object and consciousness) { मुझे इसका अर्थ ऐसा प्रतीत होता है : “स्पर्श का प्रादुर्भाव होता है, स्पर्श संनिपातवश प्रत्युपस्थित होता है (पञ्चुपाति) [अक्षरार्थ: संनिपात आसन्न कारण है- यस्य संनिपातः प्रत्युपस्थानं स संनिपातप्रत्युपस्थान इति], क्योंकि यह संनिपातसंख्यात स्वहेतुवश (और उसके अनुरूप) प्रवैदित होता है।" एक दूसरी दृष्टि से 'फस्स' वेदनापच्चुपट्ठान है [3 यो वेदनायाः प्रत्युपस्थानं स वेदनाप्रत्युपस्थान इति] क्योंकि यह वेदना या सुखा वेदना का उत्पाद करता है [पच्चपछाति = उप्पादेति य एषां धर्माणां सङ्गति : संनिपातः समवायः स स्पर्शः। संयुक्त, ३, ९; पालि का 'तिण्णं संगतिफस्सो' शुद्ध पाठ नहीं है यथा संयुत्त के इंडेक्स में है। किन्तु जैसा संयुत्त, ४, ६८, मज्झिम, १.१११ में है : या..... ..इमसं तिणं धम्मानं संगति संनिपातो समवायो अयं बुच्चति चक्खुसम्फस्सो-नेत्तिप्पकरण, २८ : चक्खु- रूपविज्ञाणसंनिपातलक्खणो फस्सो-थियरी आव ट्वेल्व कालेज, पृ० २०० अत्थसालिनी, १०९ : न संगतिमत्तमेव फस्सो पदपदक धर्मपर्याय व्या ३०४.१२], मझिम, ३.१८० (छछक्कसुत्त), दीघ, ३, २४३. $