पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३५० अभिषमकोश आहार और अभ्यवहरण नहीं होता । सिद्धान्त के अनुसार यह निर्देश कि 'आहार आयतनत्रयात्मक हैं' वाहुलिक है। [छायादि में जो गन्ध पाये जाते हैं वह आहार नहीं हैं किन्तु समुदाय में गन्ध आहार है] 1 किन्तु हमारा अभिप्राय है कि यद्यपि इनका अभ्यवहरण नहीं होता तथापि क्योंकि यह स्थिति और यापन का भी आहरण करते हैं (स्थितिमाहरन्ति, यापनमाहरन्ति) इसलिये यह गन्ध सूक्ष्म आहार हैं : यथा स्नानाभ्यंग (देखिये १. अनुवाद, पृ. ६९) । [१२१] किन्तु रूपायतन (वर्ण और संस्थान) आहार क्यों नहीं है ? वास्तव में उसका अभ्यबहरण कवड में होता है। ३९ सी-डी. रूपायतन आहार नहीं है क्योंकि यह न स्वेन्द्रिय पर अनुग्रह करता है, न मुक्तों पर। आहार वह है जो इन्द्रिय और तदाश्रय महाभूतों पर अनुग्रह करता है । किन्तु अभ्यवहारकाल में--जिस काल में अन्तर्मुख-प्रविष्ट आहार खाया जाता है (भुज्यते)-रूप न अपनी चक्षु- रिन्द्रिय पर और न उसके आश्रयभूत महाभूतों पर अनुग्रह करता है। फिर यह अन्य इन्द्रियों पर कैसे अनुग्रह करेगा जिनका यह विषय नहीं है ? निस्संदेह जब तक यह दृश्यमान होता है तब तक यह सुख-सौमनस्य उत्पन्न करता है, यह अनुग्रह करता है। किन्तु इस अवस्था में जो अनुग्रह और आहार है वह रूप नहीं है। वह सुखवेदनीय स्पर्श है जिसका आलम्बन रूप है। हमारे इस व्याख्यान का समर्थन इससे होता है कि सुमनोज्ञ रूप उन मुक्तों पर अनुग्रह नहीं करता जो उसको देखते हैं। [यदि रूप दृश्यमान होने पर आहारकृत्य करता तो यह उन पुद्गलों पर अनुग्रह करता जो कवडीकार आहार से वीतराग हैं अर्थात् जो अनागामिन् और अर्हत् हैं यथा गन्ध, रसादि अभ्यवहारकाल में इन मुक्तों पर अनुग्नह करते हैं । स्पर्शसंचेतनाविज्ञा आहाराः सास्त्रवास्त्रिषु । मनोमयः संभवैषी गन्धर्वश्चान्तराभवः ॥४०॥ निवृत्तिश्चेह पुष्टयर्थमाश्रयाश्रितयोयम् । इयमन्मभवाक्षेपनिवृत्त्यर्थं यथाक्रमम् ॥४१॥ ४० ए-बी, सालव स्पर्श, संचेतना और विज्ञा तीन धातुओं में आहार हैं।' ४ ५ शुआन्-चाङ : "छाया-आतप-ज्वाला-शैत्य-आहार कसे हैं ?" शुआन्-चाल : "यान्यपि तु नाभ्यवह्रियन्ते" का अनुवाद केवल 'पुनः' शब्द से करते हैं। बाहुल्येन किल एष निर्देशः। [ज्या ३१७.२] व्याख्या के अनुसार वसुबन्धु अब अपना अभिप्राय (स्वाभिप्राय) धोतित करते हैं । ज्या ३१७.५]. न पायतनं तेन स्वाक्षमुक्ताननुग्रहात् ॥ विभाषा, १३०.१--विभंग १३, अस्थि रूपं कलिकारो आहारो। अस्थि रूपं न कवर लिकारो आहारो। यहाँ रूपस्कन्ध इष्ट है। वसुबन्धु रूपायतन का उल्लेख करते हैं । ' स्पर्शसंचेतनाविज्ञा आहाराः सास्रवास्त्रिषु । विज्ञा, यया प्रना; इसका अर्थ विज्ञान है। 1