पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/९२

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७७ प्रयम कोशस्थानः धातुनिर्देश सव भिन्न भूमि के हो सकते हैं। १. जब कामधातु में उपपन्न सत्त्व स्वभूमि के वक्षु से स्वभूमि के रूप देखता है तो काय, इन्द्रिय, रूप और विज्ञान एक ही भूगि के होते हैं। जव यह सत्त्व प्रथमध्यानभूमिफ चक्षु से स्वभूमिक रूप देखता है तो काय और रूप कामधातु के होते हैं तथा इन्द्रिय और विज्ञान प्रथमध्यानभूमिक होते हैं। यदि वह इसी चक्षु से प्रथमध्यानशूमिक रूप देखता है तो केवल काय कामयातु का होता है, अन्य तीन प्रथम- ध्यानभूमिक होते है। जय यह सत्त्व द्वितीयध्यानभूमिक चक्षु रो कामवातु के रूप देखता है तो काय और रूप कामधातु के होते हैं, इन्द्रिय द्वितीय ध्यान का और विज्ञान प्रथम ध्यान का होता है। यदि वह इसी चक्षु से द्वितीयध्यानभूभिक रूप देखता है तो काय कामधातु का होता है, इन्द्रिय और रूप द्वितीय ध्यान के तथा विज्ञान प्रथम ध्यान का होता है (८.१३ ए-सी)। इसी प्रकार उन कोटियों की योजना करनी चाहिए जिनमें कामधातु में उपपन्न सत्त्व तृतीय-चतुर्थध्यानभूमिक चक्षु से तशूभिक या अवरभूमिक रूप देखता है। २. जब प्रथम ध्यान में उपपन्न सत्त्व तद्भूमिक चक्षरो तद्भुमिक रूप देखता है तो काय, इन्द्रिय, रूप और विज्ञान एक ही भूमि के होते हैं। यदि वह इसी चक्षु से अधरभूमिक रूप देखता है तो काय, इन्द्रिय और विज्ञान स्वभूमि के, प्रथम ध्यान को, होते है । जब यह सत्त्व द्वितीय ध्यान-चक्षु से स्वभूमि के रूप देखता है तो तीन स्वभूमि (प्रथम ध्यान) के होते हैं, इन्द्रिय द्वितीय ध्यान का होता है। यदि वह इसी चक्षु से कामधातु के [९८] रूप देखता है तो काय और विज्ञान स्वभूमि के (प्रथम ध्यान) होते हैं, रूप अधरभूमिक होता है, इन्द्रिय द्वितीयध्यानभूमिका होता है। यदि वह इमी चक्षु से द्वितीयध्यानभूमिक रूप देखता है तो काय भीर विज्ञान स्वभूमि के (प्रथम ध्यान) होते हैं, इन्द्रिय और रूप द्वितीय ध्यान के होते हैं। इसी प्रकार उन कोटियों की योजना होनी चाहिए जिनमें प्रयमध्यानोपपन्न सत्य तृतीय-चतुर्थ-ध्यान-चक्षु से तद्भूमिक या अपरममिक रूप देखता है। ३. इन्हीं नियमों के अनुसार इनकी भी योजना होनी चाहिए : जब एक द्वितीय-नृतीय- चतुर्यध्यानोपपत्र सत्व स्वभूमि या भिन्न भूमि के अक्षु से स्वभूमि या भिन्न भूमि के प देराता है। नियम यह है : न फायस्याधरं चतुरून्यं स्पं न चापः। विज्ञानं चात्य रूपं तु फापस्योभे च सर्वतः॥४६॥ ४६. पशु कार से अपर नहीं है। मन में जयं नारी हैकिसान नहीं हैं; 7 विनान के सम्बन्ध में तथा 7 और निजात पान के अन्याय गवं प्रसार