उपन्यास २२५ भाँति खड़ी होगई, मानों वह एक खुंखार भेड़िये के आक्रमण के मुकायले की तैयारी कर रही हो। कालीप्रसाद ने दोनों हाथ फैलाकर कुछ अनर्गल शब्द मुंह से कहे, और मालती की ओर बढ़ा। मालती ने साहस किया । वह एक दम पीछे हटी, और फिर उसने उस कमरे में पलँग के सिरहाने रक्खी हुई एक चिलमची उठाकर पूरे वेग से कालीवाबू के सिर पर दे मारी । कालीप्रसाद 'हाय' भी न कह सका । वह तुरन्त घृमकर धरती पर गिर पड़ा। खून का फवारा सिर से यह चला। मालती ने धव और साहस किया। उसने कम्बल और चादर को पलंग से उठाया। उसे फादकर और गाँठ बांधकर रस्सी बनाई, तथा पलँग की पाटी में बांध, वह उस खिड़की की राह, उसी के सहारे उतर चली। धरती तक पहुँचते-पहुंचते वह भर्द्ध-मूचित अवस्था में थी। नव उसके पैर धरती पर टिक गये, तब उसने कुछ सम्हलने की चेष्टा की, पर सम्हल न सकी । एक सज्जन उघर से भारहे थे । उन्होंने दूर से हो उसे साहसपूर्ण ढंग से उतरते देखा, और लपककर उसे सम्हाल लिया। उस रात्रि के धुंधले प्रकाश में उन्होंने भांप लिया, कि कोई आफत की मारी बालिका है। वे उसे हायों का सहारा दिये, एक ओर को लेगये । पास ही एक तांगा जारहा था। उसे बुना, उसमें उसे दाल, वे एक तरफ चल दिये। प्रमागिनी मालती एक विपत्ति से बचकर दूसरी में प्रा-गिर- प्रतार हुई। , १५
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