पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उपन्यास २३१ - "अच्छा तो विदा करने का प्रयन्ध करो।" चौधरी साहय ने भीतर श्राफर सय हाल नयनारायण को सुनाया, तो उन्हें कार मार गया। पर पौधरी ने माफ कह दिया -"अब दूसरा कोई चारा नहीं है।" लाचार बाप-बेटों ने सलाह करके कर्तव्य स्थिर किया। हर- नारायण चुपचाप अपनी स्त्री की कोठरी में घुस गया, यौर थोडी देर में एक छोटी पोटली लेकर याहर पाया । जयनारायण ने वह पोटली लेकर चौधरी माहब से कहा-"इन्हें गिरवी रख थाना चाहिये।" 6........." X X X X आध घण्टे में सब मामला तय होगया। पुलिस ने उस गृह का पिण्ड छोदा । उस दिन से जयनारायण ने घर से निकलना ही छोड़ दिया । हरनारायण भी शहर में मकान लेकर ना-रहा । एफ यात और रह गई। श्रीयुत गोपाल पौढ़े की अगनित जूतियों और हण्टरों से खूब पूजा हुई, निससे प्रसन्न होकर १००) नकद दारोगा देवता की भेंट चढ़ाये गये। हरगोविन्द की यात कुछ साफ-साफ नहीं मालूम हुई, पर पीछे सुना, कि वे पाउ दिन तक कच्ची ससुराल में सम्मानित हुए थे, और पांच सौ रुपये चवती बार साले सालियों को बधीश दे माये !! .