पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२५१

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चालीसवाँ परिच्छेद " पतन भी जीवन का एक अद्भुत स्वरूप है, खासकर यदि नारी का पतन हो । नारी की मर्यादा, उसकी पवित्रता, उसकी प्रतिष्ठा ऊँची है। अस्मत उसका सर्वोपरि धन है । अस्मत के लिये नारी-जाति ने सहस्रों यार वीरतापूर्वक प्राण दिये हैं। चही अस्मत पतन के मार्ग पर चलकर केवल नारी ही बेच सकती है, और उसके मूल्य की गिरती हुई दर पर जब गौर किया जाय, तो फिर खेद को छोड़कर और कुछ हाय नहीं लगता । वसन्ती भले घर की बेटी थी। वह पढ़ी-लिखी भी थी उतनी, जितनी हिन्दू-कन्याएँ साधारणतया पदा करती हैं। वह ग्रंचन यो, और फिर संस्कारों की गुलाम हुई। स्कूल की मन्या- पिकामों और सहेलियों ने उसे पतन की झांकी कराई। प्रमा- गिनी बूढे से व्याही गई, और अति वाल्यावस्या में विधवा मी होगई। मां-बाप मर गये । कहिये, अब इस चपन दुर्वल-हदया हिन्दू-बालिका के लिये कौन-सी गति है ? उसने भीख मांगी, भूखी रही, कष्ट सहे। विपत्ति के साय यौवन ने भी उस पर माक्रमण किया। उसने विपत्ति से युद्ध का अच्छा अभ्यास नहीं किया था, कि यौवन ने उसे पछाड़ दिया। वह पतन के रास्ते पर वह चली। उसके सामने पेट था, शरीर था, जीवन था।