पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1. अमर अमिलापा प्रश्नों और सन्देह से बचना चाहती थी, और सब वातावरण को ठीक भी किया चाहती थी। मालती लव कमरे में अकेली रह गई, तो वह अपनी दशा पर विचार करने लगी। एक अज्ञात भय उसके हृदय में उत्पद्ध होगया । वह सोचने लगी-विधवाश्रम में वह क्यों लाई गई है ? विधवाश्रम के सम्बन्ध में वह छ विशेष नहीं जानती थी। पर फिर भी वह कुछ सुन अवश्य चुकी थी। और वह विवनी जल्दी सम्भव हो, वहां से निकल-भागने को व्याकृत होने लगी। वह कमरे से बाहर आई। एक बार सरसरी नज़र से टयने पूरे मकान को देखा, फिर उसने तमाम घर को और उसके रहनेवालों को अच्छी तरह देखने का संकरप कर लिया। पहले टने दूसरे खण्ड की और की । वह एक छोटी-सी इत पार करके सामने के एक बड़े कमरे की तरफ चली गई। इसमें से बातचीत करने और हंसने-बोलने की आवाज़ आरही थी। उसमें जाकर उसने देखा-उसमें तीन औरत वैठी हैं। एक की टन तीस के लगभग होगी। वह दुयजी-पतक्षी दस्त-सी औरत थी। उसके गाज पिचफ रहे थे, और मुंह पर बड़े-बढ़े दाग पड़ गये थे। उसकी नाक मी बीच से बैठ गई थी। दूसरी, एक १९-२० साल की युवती थी, पर बुढ़िया-सी मालम देवी थी। उसके नेत्रों में दुष्टता साफ-साफ मना रही थी। तीसरी, एक १६-१७ मान को बड़की थी। यह कोई नीच जाति की बदकी थी, और लावारिम माव की मांति आगई थी।