पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२६७

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सपन्यास २६१ , उसने तीनों से यातचीत की। उससे उसने समझा, पहली पूर्व की रहनेवाली यनैनी है। एक मुसलमान उसे उड़ा साया था। यहां से भागकर यहाँ या फंपी है। ये लोग पति के पास पहुंचाने का वचन देकर लाये थे, पर अय शादी कराने पर तुले हुए हैं। दूसरी परेली की नाइन यी, जिसे चोरी के अपराध में दो मास की सजा होचुकी थी। वहाँ से वह सीधी इस पाश्रम में ले पाई गई। तीसरी कोई कंजर की लड़की थी, नो मटकती फिर रही थी यहाँ रख ली गयी थी। इन सब को देख, और इनकी बातें सुनकर मालती के मन में नो शंका थी, वह थोर भी मजबूत होगई, और यह समझ गई, कि वह बड़े भारी जंजाल में फंस गई है। अब यह पत के दूसरे छोर पर चली थाई । वहाँ दो युवतियाँ बारीक पाट की धोती पहने बैठी थीं। उन्होंने हंसकर मालती का स्वागत किया। मालती ने समझ लिया, कि ये पतित स्त्रियाँ यहाँ के वातावरण में पूरी तौर पर रंग गई है, और इनको अपने पतित जीवन पर तनिक भी लज्जा नहीं है। वे अनेक बार बहुतों को उल्लू बना चुकी हैं। मालती अय तेजी से अपनी कोठरी में चली थाई । देवीनी वहाँ प्रथम ही थागई थी। उन्होंने रोप भरे स्वर में कहा-"वहाँ स्या करने गई थीं?" मालती ने उसके प्रश्न का कुछ भी उत्तर न देकर कहा- "क्या मेरे पिताती का पता चला?" "चे वहाँ नहीं मिले; मेरा आदमी उन्हें ईद रहा है।"