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पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२९४

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२८ अमर अभिलापा बात कहते-कहते चमेली अत्यन्त उत्तेजित होगई थी। हरनारायण उसके इस अनुचित गर्न भापण को न सुन सके। उन्होंने कहा-"चनेली, समा गया । तुम्हें बड़ा दुख दिया गया है, और तुम पर जुल्न भी हुथा है , पर तुम्हें इतनी जवान- दराजी नहीं करनी शाहिए । कहाँ तुम अपने बाप पर लज्जित होती, धौर कहाँ ऐली गन्दी बातें बकती हो...... •"चमेली ने बीच में ही बात काटकर कहा-"मेरा पाप ? मैं कौन-सा पाप कर रही हूँ ? और अगर यह पाप ही है, तो नुन पर और तुम्हारी लाति पर इसका कहर पड़ेगा। मैं जैसी नर्क की भाग छाती में रखकर पाप करती हूँ, उसे तुम पासही मदं क्या समझ सकते हो ? भगवान् तुन्हें कभी लडकी का जन्म दे, और मेरी-सी दुर्गति बनावे, तो तुम मुझसे भी नीचे गिर जाबोगे।" चमेली भागे कह ही रही थी, कि भगवती से न रहा गया। उसने कहा- "भाई ! चलो, यहाँ से जल्दी चलो, नहीं मेरा प्राण निकल जायगा।" चमेली ने उसकी तरफ़ तान की नजर से देखकर कहा- "कहाँ चली बहन ? तुम निस लिये श्राई हो मैं समझ गई। वही करने की तैयारी को । ये तुम्हारे धर्मात्मा भाई तुम्हें पूरी मदद देने श्राये ही हैं। क्लेजा पत्थर का करो। उसमें भाग सुलगाओ, पर घुमा धन्दर-ही-धन्दर छुटने दो। बाहर अल-कपट ले हँसना, धौर की वात बनाना सीखो। दमा-रे- बेईमानी-सन्ती-इन सब से काम लो।मामो, भौर मेरे घर में