सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

56 अमर अभितापा - तो उठाकर नमक झोक दे। फमी यासन मांजने को गर्म पानी न फरने दे। मेरी क्लिाय फादफर टाल दी। धोनी चौरी पर पदी यी, उस पर दायाव उलट दी। भैया से जाने क्या-क्या कह दिया, फि ये भी सीधे-मुँह नाही बोलते हैं। मैं तो अमली पटरी इन्हीं कितायों में सिर चपाया करती हूँ।" चम्पा यह सुनकर बहुत दुखी हुई। कुछ टहरकर उसने कहा-"नारायणी भी तो थानेवाली थी, फय श्रावगी? टमे भी नो तेरी मामी फयाहीसा जायगी। क्यों, भैया उस परमों लेने जायेंगे ? उसकी ममुराल से स्वर पाई है, कि इसे खायो, यहाँ दिन-रात रोती, और फलद रसती है?" "येचारी फेरों की गुनहगार है।" कहकर पम्पा ने अपनी या पाँच दाली । फिर एफ साँस लेकर योली-"घरी, सब भाग्य के रोल हैं ! यच्या, अब जाती हूँ, रोटी-पानी का समय थागया है। अाजकल मुझे ही जाना बनाना पाता है। ला, इम किताब को लेती जाऊँ।" भगवती उम्-सदी हुई, अब उसके मुख पर प्रफुन्जता या श्रानन्द नहीं था। उसने चुपके से पुस्तक चम्पा के हाथ में रख दी, और धीमे, पर शाग्रह के स्वर में कहा-"चन्पा, ऐसी भी क्या यात; तनिक इधर झॉफ तो जाया कर।" चम्पा ने कहा-"क जल।"