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छठा परिच्छेद मस्तक युवफ फा नाम या-प्रकाशचन्द्र ! यह लो-कॉलेज फा विद्यार्थी घा, चौर फॉलेजनहोटल में रहता था। उसके पिता पजाब में कहीं एपल्ला-मसिटेण्ट कमिश्नर थे। युवक की थायु २१ के लगभग होगी। इसका उपयल, शरीर गठा हुमा, यदी-टी शाय, उमरा हुआ सीना, फूले हुए हॉल, प्रशस्त और वन्द दात, साधारणतया एक ही राष्टि में उसकी शोर मन को थापित करते थे। यह प्रातःकालीन वायु-मेयन के इरादे से धीरे-धीरे घटना. स्थल की ओर से धारदा था, कि चीन्कार मुनकर विपत्ति में पर गया। विपत्ति ? हाँ, विपत्ति ही तो; श्रजी, जिस विपत्ति ने उसे नई चिन्ता, उद्वेग और विचलित अवस्था में दाला, वह क्या विपत्ति नहीं ? फिर चाहे वह किसनी हो मधुर क्यों न हो?