पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/५९

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उपन्यास "आपने यह क्या किया?" "आप-आप न कर।" सुशीला संकोच में बैठ गई। युवक ने कहा-"खा।" "थमी मुझे भूख नहीं।" "अभी खा, मैंने कहा न, अपने सामने खिलाऊंगा।" सुशीला चुप रही। "मुझे दुख क्यों देती है ?" "आप"..." "फिर आप..."यहाँ 'श्राप कौन है ?" सुशीला ने झिझकते हुए कहा-"तु-तुम कुछ सालो, मैं पीछे खाऊँगी।" युवक ने क्रुद्ध होकर कहा-"तो धय मैं रोता हूँ।" "मैं हाथ जोड़ती हूँ, जिद न करो।" "मेरी अच्छी सुशीला-खा ले।" "पहले तुम"""" "अच्छा, हम दोनों ही खायेंगे।" पाठिकाओं, दोनों ही ने साथ भोजन करना शुरू किया। तुममें से कितनी इस ढीठ बालिका को दोष देंगी, और कितनी उस युवक को १ परन्तु तुम्हें कोई ऐसी दुरवस्था में ऐसा हठी माई. मिले तब? खा-पीकर सुशीला ने युवक के हाथ धुलाकर, उसके निकट