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अयोध्या का इतिहास


"भरत ही से भारती कीर्ति हुयी जिस से भरतवंश चला और भी जो भरत पहिले हो गये हैं सब भरत के वंश के हैं।

इसके प्रतिकूल श्रीमद्‍भागवत में लिखा है :—

प्रियव्रतो नाम सुतो मनोः स्वायंभुवस्य यः।
तस्याग्नीध्रस्ततो नाभि ऋषभ स्तत् सुत:स्मृतः॥
तमाहु वासुदेवांशं मोक्षधर्म विवक्षया।
श्रवतीर्ण पुत्रशतं तस्यासीद् ब्रह्मपारगम्॥
तेषां वै भरतो ज्येष्टो नारायणपरायणः।
विख्यातं वर्ष मेतत्तन्नाम्रा भारतमुत्तमम्॥

इसकी पुष्ठि ब्रह्माण्डपुराण पूर्वभाग अनुषंग पाद अध्याय १४ में देखिये।

ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीरः पुत्रशताग्रजः।
सोऽमिषिच्यार्षभः पुत्रम्महाप्रव्रज्जया स्थितः॥
हिमाद्रे: दक्षिणं वर्षे भरताय न्यवेदयत्।
तस्मातु भारतं वर्षे तस्य नाम्ना विदुबुधाः॥

"ऋषभ देवजी के सौ बेटे हुये जिनमें वीर भरत जेठे थे। ऋषभ देवजी भरत को राज देकर तपस्या करने चले गये। उन्होंने भरत को हिमालय के दक्षिण का देश दिया था। इसी से विद्वान लोग उसे भारतवर्ष कहते हैं"

और पुराणों की जांच से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। कहीं कहीं एक ही पुराण में दो बातें एक दूसरे के प्रतिकूल लिखी हैं। वायुपुराण प्रथम खंड अध्याय ४५ में लिखा है;

उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमवद्दक्षिणञ्च यत् ॥७५॥
वर्षे यदुभारतं नाम यत्रेयं भारती प्रजा।