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पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१०९

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अयोध्या का इतिहास

जान पड़ी कि भरतों के पुरोहित वसिष्ठ थे। पुराण परम्परा के अनुसार वसिष्ठ सूर्यवंशी क्षत्रियों के पुरोहित थे, चन्द्रवंशियों के नहीं। . . .

एक और ऋचा भी बड़े काम की है,

प्रप्नायमग्निर्भरतस्य शृण्वे।
अभियः पूरुं पृतनासु तस्थौ॥

"भरत की वही अग्नि है जिसने पुरु का पराभाव किया था।"

इसमें भरत शकुन्तला का पुत्र है तो उसकी अग्नि ने उसके लकड़दादा के नगड़दादा पुरु को कैसे परास्त किया! ऋग्वेद को ध्यान से पढ़ने से यह सिद्ध हो जायगा कि भरत प्राचीन आदि राजा था> उसके वंशज भी भरत या भारत कहलाते थे। उसने इस देश के आदिम निवासियों को जीत कर अपना राज्य स्थापन किया।

इस के अतिरिक्त जैनधर्म की जनश्रुति है। आदिनाथ या ऋषभदेव जी सूर्यवंशी थे और उनकी जन्मभूमि अयोध्या है। पुराणों में ऋषभदेव भी स्वायंभू मनु के वंशज कहे जाते हैं परन्तु यहाँ स्वायंभू मनु भी वैवस्वत मनु बने जाते हैं और मत्स्यपुराण ने स्वायंभू मनु की स्थिति ही संदिग्ध कर दी है।

अब देखना चाहिये कि—

मनु पहिले राजा थे, भरत पहिले राजा थे।
मनु ने अयोध्या बसाई, भरत की जन्मभूमि अयोध्या है
मनु वैवस्वत सूर्यवंशी थे, भरत सूर्यवंशी थे।
सूर्यवंश के पुरोहित वसिष्ठ थे, भरतों के पुरोहित वसिष्ठ थे।

निरुक्त में भरत का अर्थ सूर्य है जिसका अर्थ यह हो सकता है कि सूर्यवंशी थे। वायुपुराण में भरत ही मनु कहा गया है।

इन प्रमाणों से हम यह निश्चित करते हैं कि मनु उपनाम भरत हिन्दुस्तान के पहिले राजा थे और उन्हीं के नाम से यह देश भरतखंड या भारतवर्ष कहलाता है।