के एक बेटा असमंजस हुआ और सुमति के साठ हजार पुत्र हुये। असमंजस का लड़का अंशुमान था । सगर ने अश्वमेधयज्ञ के लिये घोड़ा छोड़ दिया। इन्द्र ने उसे चुरा कर वहाँ बाँध दिया जहाँ कपिल मुनि तपस्या करते थे।[१] सगर के बेटे घोड़े के रक्षक थे; पृथिवी खोदते वहीं पहुंचे और घोड़ा कपिल के पास देखकर बोले, 'यही चोर है, इसे मारो'। इस पर कपिल ने आँख उठा कर ज्योंही उनकी ओर देखा त्योंही सगर के सब लड़के भस्म होगये। सगर ने यह समाचार सुनकर अपने पोते अंशुमान को घोड़ा छुड़ाने के लिये भेजा। अंशुमान उसी राह से चलकर जो उसके चचाओं ने बनाई थी कपिल के पास गया। उसके स्तव से प्रसन्न होकर कपिल मुनि ने कहा कि “लो यह घोड़ा और अपने पितामह को दो;" और यह बर दिया कि "तुम्हारा पोता स्वर्ग से गंगा लायेगा। उस गंगा-जल के तुम्हारे चचा की हड्डियों में लगते ही सब तर जायेंगे ।" घोड़ा पाकर सगर ने अपना यज्ञ पूरा किया और जो गड्ढा उसके बेटों ने खोदा था उसका नाम सागर रख दिया । हम इससे यह अनुमान करते हैं कि सगर के बेटे सब से पहले बंगाल की खाड़ी तक पहुंचे थे और समुद्र को देखा था।
(४४) भगीरथ—यह राजा गंगाजी को पृथिवी पर लाया था; इसीसे गंगा जी को भागीरथी कहते हैं। क्या गंगानो पहिले नहर ही के रूप में थीं?
(४७) अम्बरीष—इनकी कथा श्रीमद्भागवतमें दी हुई है और उसी के आधार पर नाभाजी ने भक्तमाल में लिखी है। हम उसे ज्यों का त्यों श्री संतशिरोमणि श्री सीतारामशरण भगवान् प्रसाद उपनाम रूप कला जी के तिलक से उद्धृत करते हैं।
- ↑ कपिल की तपस्या की जगह बङ्गाल की खाड़ी में उसी स्थान पर है जहाँ गङ्गा समुद्र में गिरती है।