राजा दशरथ पुत्र-शोक में मर गये और भरत ने नानिहाल से आकर राज्य करना स्वीकार न किया और श्रीरामचन्द्र को फिर अयोध्या लौटा लाने को चित्रकोट गये जहाँ श्रीरामचन्द्र जी उन दिनों रहते थे। श्रीरामचन्द्र जी ने न माना। तब भरत नगर के बाहर कुटी बनाकर रहे और वहीं से राज-काज देखा।
६४ श्रीरामचन्द्र—मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान के सब से बड़े अवतार, आदर्श राजा माने जाते हैं। इनकी कथा ऐसी प्रसिद्ध है कि उसके यहाँ लिम्बन का कुछ प्रयोजन नहीं। लड़कपन ही में इन्होंने राजा गाधि के पुत्र विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा की थी। इनका विवाह मिथिलापति जनक की बंटी श्रीसीता जी के साथ हुआ। पीछे पिता का वचन प्रमाण करने का वन का चल गये। वहाँ सीता हर ले जाने के कारण दक्षिण की असभ्य जातियों से मेल करके लंका के राजा रावण को मार कर उसका राज उसके भाई को दे दिया और सीता समेत फिर अयोध्या लौटकर ऐसा अच्छा राज किया जिससे आजकल भी जिस राज में सब तरह का सुख हो, उस रामराज कहते हैं। कुछ विजय से और कुछ मामा से पाकर श्रीरामचन्द्र सारे भारत के साम्राट थे और स्वर्ग जाने से पहिले उन्होंने अपना राज अपने दो बेटों और ६ भतीजों में इस तरह बाँट दिया था :-
बेटे—१ कुश—विन्ध्याचल के तट में दक्षिण कोशल, जिसकी राजधानी कुशावती थी। यह राज इन्हें संभवतः नानिहाल से मिला था क्योंकि कौशल्या यहीं की राजकुमारी थीं। कोई कोई द्वारका को और कुछ पंजाब में कसूर को भी कुशावती मानते हैं।
२—लव—उत्तर कोशल में शरावती। पंजाब के लाहौर को भी लव का बसाया हुआ मानते हैं
भतीजे—(लक्ष्मण के बेटे)—३ अंगद को हिमालय की तरेटी में अंगदराज।