तेरहवाँ अध्याय।
दिल्ली के बादशाहों के राज्य में अयोध्या।
कन्नौज के परास्त होने पर शहाबुद्दीन ग़ोरी ने ई॰ ११९४ में अवध पर आक्रमण किया और मख़दूम शाह जूरन ग़ोरी अयोध्या में मारा गया और वहीं इसकी समाधि बनी। परन्तु बख्तियार खिलजी ने सबसे पहिले अवध में राज्य प्रबन्ध किया और उसे सेना का एक केन्द्र बनाया। इसमें उसको बड़ी सफलता हुई, और उसने ब्रह्म-पुत्र तक अपने आधीन कर लिया। उसकी शक्ति इतनी बढ़ी कि दिल्ली के सुलतान कुतुबुद्दीन के मरने पर उसने अल्तमश को दास समझ कर उसकी आधीनता स्वीकार न की। उसके बेटे गयासुद्दीन ने बङ्गाल में स्वाधीन राज्य स्थापित कर दिया, परन्तु थोड़े ही दिनों में अयोध्या उसके वंश से छिन गई और बहराइच और मानिकपूर के बीच का प्रान्त दिल्ली के आधीन कर दिया गया। इसके पीछे हिन्दू बिगड़े और बहुत से मुसलमान मार डाले गये। हिन्दुओं को दमन करने के लिये शाहजादा-नसीरुद्दीन दिल्ली से भेजा गया।
ई॰ १२३६ और ई॰ १२४२ ई॰ में नसीरुद्दीन तवाशी और कम्र-उद्दीन क़ैरान अयोध्या के हाकिम रहे। ई॰ १२५५ में बादशाह की माँ मलका जहाँ ने कतलग खाँ के साथ विवाह कर लिया और अपने बेटे से लड़ बैठी, इस पर बादशाह ने उसे अयोध्या भेज दिया। यहाँ कतलग नों ने विद्रोह किया और बादशाह के वजीर बलबन ने उसे निकाल दिया और अर्सला ख़ाँ संजर को हाकिम बनाया। परन्तु ई॰ १२५९ में वह भी बिगड़ बैठा और निकाल दिया गया। अमीर ख़ाँ या अलप्तगीन उसके बाद हाकिम बनाया गया और उसने २० वर्ष तक शासन किया। बादशाह ने उसे बागी तुग़रल को परास्त करने की आज्ञा दी। परन्तु