पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/१८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४९
दिल्ली के बादशाहों के राज्य में अयोध्या

साम्राज्य स्थापित किया गया जिसका लोहा चीन वाले भी मानते थे। यह राज्य ई॰ १३५० से १७५७ तक रहा । इस्वी सन् की चौदहवीं शताब्दी में अयोध्यापुर [१] का आश्रित राजा संकोशी (श्री भोज) इतना प्रबल हो गया था कि उसने चीन के राजदूत को मार डाला। इस पर चीन के सम्राट मिंग ने अयोध्यापुर के राजा से बिनती की कि अपने आश्रित को समझा कर शान्त कर दो।[२]

इन्हीं दिनों स्वामी रामानन्द प्रकट हुये। भविष्य पुराण में लिखा है:—

रामानन्द.........शिष्योअयोभ्यायामुपागतः

***

गले च तुलसीमाला जिह्वा राममयी कृता।

अनुवाद—"स्वामी रामानन्द का चेला अयोध्या गया। वहाँ उसने बहुत से मुसलमानों को वैष्णव बनाया। उन्हें तुलसी की माला पहनायी और राम राम जपना सिखाया।"

खिलजी के पीछे तुग़लक वंश दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। तुग़लकों के समय में अयोध्या पर विशेष कृपा दृष्टि रही। तारीख फ़ीरोज़शाही (تاريخ فيروز شاهي) में लिखा है कि मुहम्मद बिन तुग़लक ने गङ्गा तट पर एक नगर बसाना चाहा था जिसका नाम उसने स्वर्गद्वारी (स्वर्गद्वार) रक्खा। मुसलमान बादशाह को हिन्दी नाम क्यों पसन्द आया इसका कारण हमारी समझ में यही आता है कि उस समय अयोध्या का वह भाग जिसे आज-कल स्वर्गद्वारी कहते हैं, अत्यन्त सुन्दर और समृद्ध था। फीरोज़ तुग़लक पहिली बार ई॰ १३२४ में और दूसरी बार ई॰


  1. जिस गाँव के पास जलालुद्दीन खिलजी का सिर काटा गया था वह भव सक गुमसिरा कहलाता है।
  2. I.R.A.S., 1905, p. 485 et. seq.