उपकार के लिये तीन मास तक धर्म के उत्तमोत्तम सिद्धान्तों का विवेचन किया था। स्मारकस्वरूप स्तूप के निकट बहुत से चिह्न गत चारों बुद्धों के उठने बैठने आदि के पाये जाते हैं।
संघाराम के पश्चिम ४-५ ली दूर एक स्तूप है जिसमें तथागत भगवान् के नख और बाल रक्खे हैं। इस स्तूप के उत्तर एक संघाराम उजड़ा हुआ पड़ा है। इस स्थान पर श्रीलब्ध शास्त्री ने सौत्रान्तिक सम्प्रदायसम्बन्धी विभाषाशास्त्र का निर्माण किया था।
नगर के दक्षिण-पश्चिम ५-६ ली की दूरी पर एक बड़ी आम्रवाटिका में एक पुराना संघाराम है। यह वह स्थान है जहां असङ्ग वोधिसत्व ने विद्याध्ययन किया था। फिर भी उसका अध्ययन जब परिपूर्णता को नहीं पहुंचा तब वह रात्रि में मैत्रेय वोधिसत्र के स्थान को जो स्वर्ग में था, गया और वहां पर योगधर्म शास्त्र, महायान सूत्रालङ्कार टीका, मद्यान्त विभङ्ग शास्त्र आदि को उसने प्राप्त किया और अपने गूढ़ सिद्धान्तों को जो अध्ययन से प्राप्त हुये थे समाज में प्रकट किया।
आम्रवाटिका से पश्चिमोत्तर दिशा में लगभग १०० क़दम की दूरी पर एक स्तूप है जिसमें तथागत भगवान के नख और बाल रक्खे हैं। इसके निकट ही कुछ पुरानी दीवारों की बुनियाद है। यह वह स्थान है जहां पर वसुबन्धु बोधिसत्व तुषितस्वर्ग से उतर कर असङ्ग बोधिसत्व को मिला था। असङ्ग बोधिसत्व गन्धार प्रदेश का निवासी था। बुद्ध भगवान के शरीरावसान के पाच सौ वर्ष पीछे इसका जन्म हुआ था। तथा अपनी अनुपम प्रतिभा के बल से वह बहुत शीघ्र बौद्ध सिद्धान्तों में ज्ञानवान हो गया था। प्रथम यह महीशासक सम्प्रदाय का सुप्रसिद्ध अनुयायी था परन्तु पीछे से इसका विचार बदल गया और यह महायान समुदाय का अनुगामी बन गया। इसका भाई वसुबन्धु सर्वास्तिवाद समुदाय का सूक्ष्मबुद्धि भक्त, दृढ़-