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अयोध्या का इतिहास

न बनेगा तब तक तुम जीत नहीं सकते। देवताओं ने उनसे प्रार्थना करके उन्हें राजी किया। मरने से पहिले राजा ने सब तीर्थों का जल एक कुण्ड में डलवा दिया। इससे उस स्थान का नाम मिश्रित पड़ा। पीछे लोग उसे मिसरिख कहने लगे।

सुलतानपुर—कहते हैं कि यह प्राचीन नगर राम के पुत्र कुश के द्वारा बसाया गया था और उसे कुसपुर या कुशभवनपुर भी कहते थे। कनिंघम ने इसी स्थान को ह्वाननच्वांग का कुशभवनपुर कहा है। ह्वाननच्वांग कहता है कि उसके समय में वहाँ पर एक नष्टप्राय अशोक का स्तूप था और बुद्ध ने वहाँ ६ मास तक उपदेश दिया था। आजकल भी सुलतानपुर के उत्तर पश्चिम में ५ मील की दूरी पर महमूदपुर नामक ग्राम में बौद्ध मठों के खँडहर मिलते हैं। प्राचीन नगर को अलाउद्दीन ख़िलजी ने नष्ट कर दिया था।

गोमती के किनारे पर सुलतानपुर के पास ही, सिविल लाइन के बाद ही एक स्थान है जिसे सीता-कुण्ड कहते हैं जहाँ सीता जी ने अपने पति के साथ वन जाते समय स्नान किया था।

फैज़ाबाद—अयोध्या को छोड़कर इस ज़िले में चारों ओर रामचरित संबंधी तीर्थ हैं।

नंदिग्राम—जहाँ भरत जी १४ वर्ष तापस वेष में रहे थे।

तारड़ीह—वन-यात्रा में पहिले दिन श्रीरामचन्द्र तमसा तट-पर यही टिके थे। इसी से कुछ दूर पूर्व तमसा-तट पर वाल्मीकि का आश्रम था।

वारन—यहाँ एक बाजार और एक ताल है। यहाँ महाराज दशरथ के हाथी रहते थे (वारण-हाथी) और यहीं सरवन मारा गया था। वारन ताल तमसा (मड़हा) का एक भाग है। इसका पूरा वर्णन हमारी छपाई अयोध्या कांडकी भूमिका में है।

अब ज़िले भर के और रामायण-संबंधी स्थानों के वर्णन करने की कुछ आवश्यकता नहीं। इसलिये अब हम अयोध्या, अवध, साकेत