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(ख) और प्राचीन ग्रन्थों में अयोध्या का वर्णन
(ख) और प्राचीन ग्रन्थों में अयोध्या का वर्णन
कालिदास का वर्णन—कालिदास ने रघुवंश के आदि में अयोध्या का वर्णन नहीं किया, यद्यपि अपने आश्रयदाता चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के साथ अयोध्या आये थे। उस समय महाकवि ने अयोध्या की उजड़ी दशा देखी थी जिसका वर्णन उन्होंने सर्ग १६ में किया है। इसीसे हमें कुछ अयोध्या की समृद्धि का पता लगता है। अयोध्या की अधिष्ठात्री देवी महाराज कुश से कहती है—
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मैं सुराज संपदा जनाई।
मानी लघु कैलास बढ़ाई॥ - ↑
निशि महँ बजत नुपुरुन धारी।
चलीं जहाँ पिय खोजन नारी॥
कान्तार्थिनी तु या याति संकेतं साऽभिसारिका।
अभिसारिका उसे कहते हैं जो अपने कान्त की खोज में संकेत (किसी नियत स्थान) को जाय। महाकवि कालिदास ने तो लिखा ही है आगे जानकीहरण महाकाव्य में भी अभिसारिकाओं का वर्णन है। हमारे पाठक यह न समझें कि यह सूर्यवंश की राजधानी के अयोग्य है। समृद्ध नगर में सब तरह के लोग रहते हैं। राजधानी जिसमें—
रिधि सिधि सम्पति नदी सुहाई।
उमगि अवध अंबुधि कहँ आई॥