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और प्राचीन ग्रन्थों में
(४१३–५५ ई॰) था। नाम की समानता से ऐसी भ्रान्ति स्वाभाविक है।"[१]
हम अध्याय १० में दिखायेंगे कि महाकवि कालिदास गुप्तवंशी राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के आश्रित थे। कुमारगुप्त महेन्द्रादित्य उसका बेटा था। जानकीहरण काव्य[२] रघुवंश के पीछे लिखा गया जैसा कि इस श्लोक से प्रकट है।
- जानकीहरणं कर्तुं रघुवंशे स्थिते सति।
- कविः कुमारदासश्च रावणश्च यदि क्षमः॥
जानकीहरण महाकाव्य में आदि ही में अयोध्या का वर्णन है। इसके कुछ अंश नीचे उद्धृत किये जाते हैं:—
- आसीदवन्यामतिभोगभाराद्दिवोऽवतीर्णा नगरीव दिव्या।
- क्षत्रानलस्थानशमी समृद्ध्या पुरामयोध्येति पुरी परार्ध्या॥
[अयोध्या पुरी क्षत्रियों के तेज की शमी धनधान्य से पूरित, एक दिव्य नगरी ऐसी जान पड़ती थी मानों भोग के भार से स्वर्ग से पृथिवीतल पर उतरी थी।]
- कृत्वापि सर्वस्य मुदं समृद्ध्या हर्षाय नाभूदभिसारिकाणाम्।
- निशासु या काञ्चनतोरण्स्थरत्नांशुभिर्भिन्नतमिस्रराशिः॥
[वह अपनी समृद्धि से सब को सुख देकर अभिसारिकाओं को दुख देती थी क्योंकि उसके सुनहरे फाटकों में जड़े हुये रत्नों के प्रकाश से अँधेरा छट जाता था।]
- स्वबिम्बमालोक्य ततं ग्रहाणामादर्शभित्तौ कृतबन्भ्यघातः।
- रथ्यासु यस्यां रदिनः प्रमाणं चक्रुर्मदामोदमरिद्विपानाम्॥
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