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(ग) सूर्यवंश के अस्त होने के पीछे की अयोध्या

अयोध्या कितनी बार बसी और कितनी बार उजाड़ हुई, इसका हिसाब करना सहज नहीं है। सच पूछिये तो भगवान् श्रीरामचन्द्र की लीला-संवरण के बाद ही अयोध्या पर विपत्ति आई। कोशलराज के दो भाग हुये। श्रीरामचन्द्र के ज्येष्ठ कुमार महाराज कुश ने अपने नाम से नई राजधानी "कुशावती" बनाई और छोटे पुत्र लव ने "शरावती" वा "श्रावस्ती" की शोभा बढ़ाई। राजा के बिना राजधानी कैसी? अयोध्या थोड़े ही दिनों पीछे आप से आप श्रीहीन हो गई। अयोध्या के दुर्दशा के समाचार सुन महाराज कुश फिर अयोध्या में आये और कुशावती ब्राह्मणों को दानकर पूर्वजों की प्यारी राजधानी और उनकी जन्म-भूमि अयोध्या ही में रहने लगे।

कविकुल-कलाधर महाकवि कालिदास ने रघुवंश काव्य के १६ वें सर्ग में कुशपरित्यक्ता अयोध्या का वर्णन अपनी ओजस्विनी अमृतमयी लेखनी से किया है जिसको पढ़कर आज दिन भी सरस रामभक्तों का हृदय द्रवीभूत होता है। यद्यपि महाकवि ने यह उस समय का पुराना चित्र उतारा है, पर हाय! हमारे मन्द अदृष्ट से वर्तमान में भी तो वही वर्तमान है। भेद है तो यही है कि उस समय भगवती अयोध्या की पुकार सुननेवाला एक सूर्यवंशी विद्यमान था। अब वह भी नहीं रहा।

जड़ जीव कोई सुने या न सुने। परन्तु अयोध्या की वह हृदयविदारिणी पुकार सरयू के कल कल शब्द के साथ "हा राम! हा राम!" करती हुई अभी तक आकाश में गूँज रही है। उस प्राचीन दृश्य को विगत जीव हिन्दु-समाज भूले तो भूल सकता है, परन्तु अयोध्या की अधिष्ठात्रीदेवी किस प्रकार भूल सकती है।