पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/१०३

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पुनः-तन परिसंख्या ९९ १-( बहुत देकर थोड़ा लेना) दो-कासों कहिये आपनो यह अजान यदुराय। मनि मानिक दीन्हो तुम्हें लीन्हो बिरह बलाय ॥ मन धन दै प्रेम सों लाये रोग बिसाहि। तुम कौन धौं पाटी पढ़े हो लला मन देत पै लेत छटॉक नहीं। २-(थोड़ा देकर बहुत लेना) १-चारो फल देत चार चाउर चढ़ाये ते । -सेवा सुमिरन पूजिबो पात आखत थोरे। दिये सबै जहँ लौं जगत सुख गज रथ घोड़े। ३-इक धतूर फल दै सिबहिं लिय अमोल फल चारि । -तीन मूठी भर आजु दै करि अनाज आपु लीन्हीं यदु- रायजू सो संपति धनेस की। ५-देखी त्रिपुरारी की उदारता अपार जहाँ पैये फल चारि एक फूल दै धतूरे को। सूचना-इस अलंकार को विनिमय' भी कहते हैं। ३०-परिसंख्या दो०-करि निषेध थल एकते राखिय औरहि ठौर । वस्तु, धर्म, गुन, जाति जहँ परिसंख्या तेहि ठौर ॥ विवरण-जहाँ किसी वस्तु, धर्म, गुण वा जाति को अन्य सब स्थानों से (जो उसके उपयुक्त माने जाते हों) वर्जित करके किसी एक विशेष स्थान पर ठहरावे, वहाँ परिसंख्या अलंकार होता है। 'परिसंख्या' शब्द का अर्थ यहाँ पर "अपने स्थान से हटाई गई और दूसरे स्थान पर बैठाई हुई वस्तु की गणना" है। यथा-