पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/१०६

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१०२ अलंकारचंद्रिका गुनिगन चोर जहाँ एक चित्त होके, लोक बँधे जहाँ एक सरजा की गुनि प्रीति है। कंप कदली में वारि बुंद बदली में, सिवराज अदली के राज में यो राजनीति है। नोट-कभी-कभी प्रश्नोत्तर को रीति से भी यह अलंकार कहा जाता है। दो--सेव्य कहा ? तट सुरसरी, कहा धेय ? हरि पाद । करन उचित कह धर्म नित, चित तजि सकल विषाद । ३१-समाधि 'समाधि' शब्द का अर्थ है 'शक्तिसंपन्न करना।' दो०-और हेत के मिलन ते सुगम होय जहँ काज । विवरण-आकस्मिक कारणांतर के योग से जहाँ कार्य अति सुगमता से हो जाय । १-पावक जरत देखि हनुमंता । भयो परम लघु रूप तुरंता । निबुकि चढ़यो कपि कनक अटारी। भई सभीत निसाचर नारी। हरि प्रेरित तेहि अवसर चलै पवन उनचास । हनुमानजी लंका को जलाना चाहते थे कि अकस्मात् उनचासों पवनों की सहायता से वह काम और भी सुगम हो गया। २-मीत गमन अवरोध हित सोचत कळू उपाय। तबही आकस्मात् ते उठी घटा घहराय ॥ ३-रामचन्द्र सोचत रहे रावन बधन उपाय । सूपनखा ताही समय करी ठठोली आय ॥