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पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/२०

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अलंकार चंद्रिका कोई व्यक्ति किसीसे कहता है-“हे श्रेष्ठ ! मुमति गहिके मान तजो। वह व्यक्ति शब्दों को तोड़कर 'मान तजो गहि' को 'मानत जोगहि' समझकर उत्तर देता है। पुनः दो०-नारी के अनुकृन्न तुम, अाचरन जु दिनरात । कौन अरिनि सो हित करत, है बसुधा विख्यात ॥ यहाँ उत्तरार्द्ध में 'नारी' शब्द को तोड़कर न+अरि करके उत्तर दिया है। सूचना-उर्दू तथा फारसी में 'सभंगपद श्लेप' को 'तजनीस मुरक्कव' और 'अभंगपद श्लेष' को 'तजनीस ताम' कहते हैं। (२) अभंगपद् वह है जिसमें शब्द का पद तोड़ा न जाय, किंतु अनेकार्थ कोश से किसी शब्द का अर्थ ऐसा लिया जाय जो कहनेवाले के अर्थ से भिन्न हो। जैसे- कवित्त-खोलो जू किवार, तुम को हो एती बार ? हरि नाम है हमारो, वसो कानन पहार में । हो तो प्यारी माधव तो कोकिला के माथे भाग, मोहन हो प्यारी, पगे मंत्र अभिचार में। रागी हौं रंगीनी तौ जु जाहु काहू दाता पास, भोगी है छवीली, जाय बसौ जू पतार में। नायक हौं नागरी तो हाँको कह टॉरा जाय, हो तो घनश्याम, बरसो जू काहू खार में । इसमें कृष्ण और राधिका का परिहास-वर्णन है- कृष्णजी अपना जो नाम वतनाते हैं उसी का दूसरा अर्थ लेकर राधिका उत्तर देती जाती है। राधिकाजी का अर्थ- हरि = बंदर । माधव = वैसाख मास । मोहन = मोहनप्रयोग (मारण, मोहन इत्यादि का)। रागी=गवैया । भोगी=सर्प। नायक=बंजारा । घनश्याम =काला बादल ।