पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/३२

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२८ अलंकारचंद्रिका यहाँ मार से, रस वीर सिंगार ने, नीलम चंपक माल से और मृगराजकुमार से इत्यादि में उपमान और वाचक मौजूद हैं। धर्म का प्रत्यक्ष लोप है। अज्ञानसूचक 'कोन' शब्द कह- कर उपमेय का लोप किया गया है, जो मुनि संग, श्रीमिथिला- पति के सामुह, और स्वयं वर इत्यादि के साहचर्य से लक्षित होता है। ८--( वाचकोपमेयलुप्ता) जहाँ वाचक और उपमेय का लोप किया जाय । जैसे- १-अटा उदय होतो भयो, छविधर पूरन चंद । २-चढ़ो कदम पै कालिया, विषधर देखो प्राय । है--(वाचकोपमानलुप्ता) जिसमें वाचक और उपमान का लोप किया जाय । जैसे- ५-तेरे ये कटु वचन हु ग्मुनत हियो हरषात । २-सूच्छम हरि कटि एन । ३-चितवनि चारु मारमद हरनी । भावति हृदय जाति नहिं बरनी। ४-अरुण नयन उर बाहु बिसाना। ५-सुनि केवट के बैन, प्रेम ल पटे अटपटे । ६-मूरति मधुर मनोहर देखो । भयउ विदह विदह बिग्नेखी । १०-(वाचकधर्मोपमानलुप्ता) जिसमें केवल उपमेय का जिक्र हो और युक्ति से उपमान का अभाव कहा जाय। १-राम सरूप तुम्हार, बचन अगोचर बुद्धि पर । २-अहै अनुप राम प्रभुताई । बुधि विवेक बल तरकि न जाई । ३-देखि अनूप एक अमराई ।