पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/३३

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उपमा २९ ४-अति अनूप जहँ जनक निवासू । ५-बलि बाँधत प्रभु वाढ़ेऊ, सो तनु बरनि न जाय । सूचना-वाचकधर्मउपमेयलुप्ता' का रूपकातिशयोक्ति अलग ही एक अलंकार है। 'धर्मोपमानोपमेयलुप्ता' में केवल वाचक रहेगा, जिससे कोई अलंकारता नहीं आ सकती, और 'वाचकोपमेयलुप्ता' में केवल साधारण धर्म के कथन से अलंकारता पा नहीं सकती। २-मालोपमा दो०-जहँ एकै उपमेय के, बरनैं बहु उपमान । भिन्न अभिन्नहि धर्म तें, मालोपमा बखान ।। विवरण-जहाँ एक उपमेय के बहुतसे उपमान कहे जाय, वहाँ मालोपमा अलंकार होता है। यह दो प्रकार का होता है। (१) भिन्नधर्मा और (२) एकधर्मा । ( भिन्नधर्मा मालोपमा) जहाँ अनेक उपमानों के पृथक्-पृथक् धर्मो के वास्ते उपमा दी जाय । जैसे- तेज निधानन में रवि ज्यों छविवंतन में विधु ज्यों छवि छाजे ! सैलन में ज्यों मुमेरु लस वर वृक्षन में कलपद्रुम राजै ॥ देवन में मतिराम कहै मघवा जिमि सोहत सिद्ध समाजै। राउ छतामुत भाऊ दिवान जहान के राजन में इमि राजै ॥ दो०-मरकत से दुतिवंत हैं, रेसम से मृदु बाम । निपट महीन मुतार से, कच काजर से ल्याम ॥ बंदौं खल जस सेस सरोषा । सहस बदन बरन पर दोषा ॥ पुनि प्रनवौं पृथुराज समाना। पर अघ सुनै सहसदस काना ॥ बहुरि सक्रसम बिनवौं तेही। संतत सुरानीक हित जेही ॥