पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/३५

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उपमा संकर सैल सी, चंद्रिका फैल सी, सारस रैलसो, हलाकुमारली। 'दास' प्रकासहिमाद्रिबिलासली. कुंदसी कॉससी, मुक्तिभंडारली! कीरतिहिन्दु-नरेस की राजति उज्वल चारु चमेली के हारसी। इंद्र जिमि जंभ पर, बाड़व सुअंभ पर, रावन सदंभ पर रघुकुल राज है। पोन बारिबाह पर, संभु रतिनाह पर, ज्यों सहसवाह पर राम द्विजराज है। दावा द्रुमदंड पर, चीता मृग अँड पर, 'भूषन' वितुंड पर जैसे मृगराज है। तेज तिमि अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर, त्यो मलेच्छ बंस पर सेर सिवराज है। सक्र जिमि सैल पर,अर्क तम फैल पर, विधन की रेल पर लंबोदर लेखिये । राम दसकन्ध पर, भीम जरासन्ध पर, 'भूपन' ज्यो सिंधु पर कुम्भज बिसेषिये । हर ज्यों अनंग पर, गरुड़ भुजंग पर, कौरव के अंग पर पारथ ज्यों देखिये। वाज ज्यों विहंग पर, सिंह ज्यों मतंग पर, म्लेच्छ चतुरंग पर सिवराज देखिये। ३-शनोपमालंकार दो० -कथित प्रथम उपमेय जहँ, होत जात उपमान । ताहि कह रशनोपमा, जे जग सुकवि प्रधान ॥ विवरण-कई एक उपमालंकारों की एक श्रृंखलावद्ध श्रेणो को-जिसमें क्रमशः प्रथम कहा हुआ उपमेय उपमान होता जाता है-रशनोपमा कहते हैं । जैसे-