पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अतिशयोक्ति हरि पर सरबर सर पर गिरिबर गिरि पर फूले कंज पराग । रुचिर कपोत बसै ता ऊपर ता ऊपर अमृत फल लाग । फल पर पुहुप पुहुप पर पल्लव ता पर सुक पिक मृगमद काग। खंजन धनुष चंद्रमा ऊपर ता ऊपर इक मनिधर नाग। युगल कमल-दोनों चरण । गज-मंद चाल । सिंह-कटि । सरवर-नाभि । गिरिवर-कुच । कंज-मुख । कपोत-कंठ । अमृत फल-चिबुक । पुहुप-गोदनाविंदु । पल्लव-होंठ । शुक- नाशिका । पिक-बाणी । मृगमद-कस्तूरीविंदु । काग-काकपत, पाटी। खंजन-नेत्र । धनुष-भौहैं। चंद्रमा-ललाट । मणिधर- नाग-सीस फूल सहित गूथी हुई वेणी। [ इसी प्रकार और भी समझना चाहिये ] ६-अत्यंतातिशयोक्ति दो०-जहाँ हेतु ते प्रथम ही प्रगट होत है काज । अत्यंतातिशयोक्ति तेहि कह सकल कविराज ॥ जैसे- दोहा-हनूमान पूंछ में लगन न पाई आग। लंका सिगरी जरि गई गये निसाचर भाग ॥ राजन ! राउर नाम जस सब अभिमतदातार । फल अनुगामी महिपमनि मन अभिलाष तुम्हार ॥ इसमें पहले फल, तदंतर मनोऽभिलाष वर्णित किया गया है। कवित्त-मंगन मनोरथ के प्रथमहि दाता तोहिं, कामधेनु काम तरु सो गनाइयतु है। याते तेरे गुन सब गाय को सकत कबि, बुद्धि अनुसार कछु तऊ गाइयतु है।