पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/८९

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विरोधाभास दो०-जु हरि हमारो जीव निज ताहि चल्यौ लै दूर । को सो जा यहि कूर को धस्सो नाम अक्रूर ।। यहाँ अक्रूर की निंदा से नामकरण करनेवाले की भारी निंदा प्रकट होती है। २३-विरोधाभास दो०- ro-द्रव्य क्रिया गुन जाति में भासत जहाँ बिरोध । कहत विरोधाभास तेहि बुध जन सहित सुबोध ॥ विवरण-जहाँ विरोधी पदार्थों का वर्णन किया जाय वह विरोधाम प्रलंकार है। ऐसा वर्णन वर्णनीय की विशेषता वा उत्कर्ष जताने के लिये होता है। प्रस्तार करने से इसके दस भेद हो जाते हैं। जैसे- जाति का विरोध-(१) जाति से (२) गुण से (३) क्रिया से (४) द्रव्य से। गुण का विरोध-(१) गुण से (२) क्रिया से (३) द्रव्य से। क्रिया का विरोध-(१) क्रिया से ( २ ) द्रव्य से द्रव्य का विरोध-(१) द्रव्य से। सूचना-कुछ उदाहरण लिख देते हैं। पाठक स्वयं विचार कर लें कि किसका किससे विरोध है। १-चरनकमल वंदौं हरि राई। जाकी कृपा पंगु गिरि लंबै अंधे को सब कछु दसाई । बहिरो सुनै मूक पुनि बोले रंक चलै सिर छत्र धराई । 'सूरदास स्वामी करुनामय बार बार बंदौ तेहि पाई ।

  • इस अलंकार को फारसी तथा उर्दू में 'मुहतमिलुल जिदैन'