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पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/९

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अनुप्रास

स, ह, और छोटे समास वा समासहित शब्द जिसमें अधिक हों उसे 'कोमला' वृत्ति कहते हैं। श्रृंगार, करुणा और हास्य रस की कविता उपनागरिका में; रौद्र, वीर और भयानक रस की कविता परुषा में और शांत, अद्भुत तथा वीभत्स रस की कविता कोमला वृत्ति में अच्छी लगती है।

(उपनागरिका वृत्ति के अनुकूल)

धर्म धुरीन धीर नय नागर। सत्य सनेह सील सुख सागर
विरति बिवेक बिनय विज्ञाना। बौध यथारथ वेद पुराना॥

पुनः—रघुनंद आनँदकंद कौसलचंद दसरथनंदनं।

पुनः—भनत मुरार देश देशन में कीर्ति गाई, ऐसी चपलाई
कहौ छाई है कवन में। नट में न नारि में न नय में न नैनन
में मृग में न मारत में मीन में न मन में।

पुनः—सोइ जानकी-पति मधुर मूरति मोदमय मंगलमई।

पुनः—देवबंदिनी के निमिबंसचंदिनी के युग
नीक पदकंज मिथिलेसनंदिनी के हैं।

पुनः—दो॰—लोपे कोपे इंद्र लौं, गेपे प्रलय अकाल।
गिरिधारी राखे सबै, गो गोपी गोपाल॥

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(परुषा वृत्ति के अनुकूल)

दो॰—बक्र बक्र करि पुच्छ करि, रुष्ट ऋक्ष कपिगुच्छ। सुभटठट्ट घनघट्ट सम, मर्दहि रच्छन तुच्छ॥

कवित्त—बारि टारि डारौं कुंभकर्णहि बिदारि डारौं, मारौं मेघनादै आजु यों बल अनंत हौं। कहै 'पदमाकर' त्रिकूट हूँ को ढाहि डारौं, डारत करेई जातुधानन को अंत हौं।