क्रम २८-क्रम दोहा-क्रम सों कहि पहिले कछु क्रम ते अर्थ मिलाय । यों ही और निबाहिये क्रम भूषन सु कहाय ॥ विवरण-दो, चार अथवा और भी अधिक चीजों का जिस क्रम से पहले वर्णन करें, उसी क्रम से उनका वर्णन अंत तक निबाहे, उसे 'क्रम' अलंकार कहते हैं । 'यथासंख्य' भी इसी का नाम है । इस अलंकार के मुख्य ३ भेद हैं- (१) यथाक्रम (२) भंगक्रम (३) विपरीत क्रम। १-[ यथाक्रम] दो०-रंक, लोह, तरु, कीट ये परसि न लपटें अंग। कहा नृपति, पारस कहा, कह चंदन कह भंग ॥ यहा पहले चार वस्तुओं का उल्लेख किया~रंक, लोहा, तरु और कीट । फिर कहा कि ये चारों सत्संग पाकर अपना रूप न यलट दें तो राजा, पारस, चंदन और भंग व्यर्थ ही हैं। यहाँ जिस क्रम से पूर्वार्द्ध में चार वस्तुओं के नाम आये हैं, उत्तरार्द्ध में ठीक उसी क्रम से उनको पलटानेवाली वस्तुओं के नाम भी आये हैं अर्थात् रंक के लिये नृपति, लोहे के लिये पारस, तरु के लिये चंदन और कीट के लिये भंग । ऐसी ही वर्णन-प्रणाली में 'क्रम' अलंकार माना जाता है 1 पुनः-दो०-गिरे अरिन के तकत तुव रूप रोष बिकरार । तन ते मन ते करन ते स्वेद् गरब हथियार ॥ अर्थात् तेरा रोषपूर्ण रूप देखकर शत्रुओं के तन से, मन से और हाथों से गिर पड़े पसीना, गर्व और हथियार अर्थात् तन
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