पृष्ठ:अहंकार.pdf/१०

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वस्तु है। देखिये, विद्वानों और दार्शनिकों के आचरण थायस पहले यहाँ तक कि सारी सभा नशे में मस्त हो जाती है, लोग के धार्मिक गले मिलकर सोने में लेशमात्र भी संकोच नहीं करते। इसी अपनाशी ने ईसाई मत का बोलबाला किया । थियोडोर एक हब्शी गुलआश्रम लेकिन उसका चरित्र कितना उज्ज्वल है। सन्त एन्टोनी का चित्त हमारे यहाँ के ऋषियों से मिलता है। कितना शान्त, कितना सौम्य रूप है। ईसाइयों की यही धर्मपरायणता और सच्चरिशता थी वो उसके विजय का मुख्य कारण हुई।

उस समय के खान-पान, रहन-सहन, आहार व्यवहार का भी इस पुस्तक में बहुत ही मार्मिक उल्लेख किया गया है। पापनाशी ने जिस स्तम्भ के शिखर पर तप किया था उसके नीचे जो नगर पस गया था, और वहाँ जो उत्सव होते थे उनका वृत्तान्त उस काल का यथार्थ चित्र है। देश देश के यात्रियों के मिश्च मिन वस्त्रों को देखिये। कही मदारी का समाशा है, कहीं सँपेरा साँप को बचा रहा है, कहीं कोई महिला गधे पर सवार मेले में से निकल जाती है, फेरीवाले चिल्ला रहे है, फ़कीर गा गा कर भीख मांग रहे हैं। सोचिये, यह विपद चित्र खींचने के लिए लेखक को उस समय का कितना ज्ञान प्राप्त करना पड़ा होगा!

यह तो पुस्तक के ऐतिहासिक महत्व की चर्चा हुई। अब मुख्य कथा पर आइये। एक संत के अहंकार और उसके पतन की ऐसी मार्मिक मीमांसा संसार के साहित्य में न मिलेगी। लेखक ने यहाँ अपनी विलक्षण कल्पनाशक्ति का परिचय दिया है। वर्तमान काल के एक करोड़पति, या किसी वेश्या के मनोभाषों की कल्पना करना बहुत कठिन नहीं है। हम उसे नित्य देखते हैं, उससे मिलते-जुलते है, उसकी है बातें सुनते हैं। लेकिन एक तपस्वी के हृदय में पैठ जाना और उसके एर संचित भाषों और आकांक्षाओं को खोज निकालना किसी आत्मज्ञानी