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अहङ्कार

मैं स्वयं पापमुक्त नहीं हूँ कि दूसरों पर पत्थर फेंकू । मैंने कितनी ही बार उस विभूति का दुरुपयोग किया है जो ईश्वर ने मुझे प्रदान की है। क्रोध ने मुझे यहाँ आने पर उत्साहित नहीं किया। मैं दया के वशीभूत होकर आया हूँ | मैं निष्कपट भाव से प्रेम के शब्दों में तुझे आश्वासन दे सकता हूँ, क्योंकि मेरा पवित्र धर्मस्नेही मुझे यहाँ लाया है। मेरे हृदय में वात्सल्य की अग्नि प्रवलित हो रही है और यदि मेरी आँखें जो विषय के स्थूल, अपवित्र दृश्यों के वशीभूत हो रही हैं, वस्तुओं को उनके आध्यात्मिक रूप मे देखती तो तुमे विदित होता कि मैं उस जलती हुई माड़ी का एक पल्लव हूँ जो ईश्वर ने अपने प्रेम का परिचय देने के लिए भूसा को पर्वत पर दिखाई थी-जो समस्त संसारमें व्याप्त है, और जो वस्तुओं को जलाकर भस्म कर देने के बदले, जिस वस्तु में प्रवेश करती है उसे सदा के लिए निर्मल और सुगन्धर श्य बना देती है।

थायस ने भाश्वस्थ होकर कहा-

महात्माजी, अब मुझे आप पर विश्वास हो गया। अब मुझे. आपसे किसी अनिष्ट या अमंगल की आशका नहीं है। मैंने धर्माश्रम के तपस्वियों की बहुत चर्चा सुनी है । ऐन्टोनी और पॉन के विषय में बड़ी अद्भुत कथायें सुनने में आई हैं। आपके नाम से भी मैं अपरिचित नहीं हूँ और मैंने लोगों को कहते सुना है कि यद्यपि आपकी उन अमी कम है, आप धर्मनिष्ठा में उन अपस्वियों से भी श्रेष्ठ हैं जिन्होंने अपना समस्त जीवन ईश्वरभाराधना में व्यतीत किया । यद्यपि मेरा आपसे परिचय न था, किन्तु आपको देखते ही मै समझ गई कि आप कोई साधारण पुरुष नहीं हैं. बताइये आप मुझे वह वस्तु प्रशान कर सकते हैं जोसारे संसार के सिद्ध और साधु, प्रोमो और सयाने, कापालिक: