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अहङ्कार

चौथे ने कहा-उसको नमस्कार जिसकी सभी अकांक्षा करते हैं!

पाँचवाँ बोला-उसको नमस्कार जिसकी आँखों में विष है और उसका उतार भी!

छठा बोला-स्वर्ग के मोती को नमस्कार।

सातवाँ बोला-इस्कन्द्रिया के गुलाब को नमस्कार!

थायस मन में झुँझला रही थी कि अभिवादनों का यह प्रवाह कब शान्त होता है। जब लोग चुप हुए तो उसने गृह-स्वामी कोटा से कहा-

लूशियस, मैं आज तुम्हारे पास एक मरुस्थत निवासी तपस्वी लाई हूँ जो धर्माश्रम का अध्यक्ष है। इसका नाम पापनाशी है। यह एक सिद्ध पुरुष हैं जिनके शब्द अग्नि की भाँति उद्दीपक होते हैं।

लूशियस और लियस कोटा ने, जो जलसेना का सेनापति था। खड़े होकर पापनाशी का सम्मान किया और बोला-

ईसाई धर्म के अनुगामी संत-पापनाशी का मैं हृदय से स्वागत करता हूँ। मैं स्वयं उस मत का सम्मान करता हूँ जो अब साम्राज्यव्यापी हो गया है। श्रद्धेय महाराज कान्सटैनटाइन ने तुम्हारे सहधर्मियों को साम्राज्य के शुभेच्छुकों की प्रथम श्रेणी में स्थान प्रदान किया है। लैटिन जाति की उदारता का कर्तव्य है कि वह तुम्हारे प्रभु मसीह को अपने देवमन्दिर में प्रतिष्ठित करे। हमारे पुरुषाओं का कथन था कि प्रत्येक देवता में कुछ न कुछ अंश ईश्वर का अवश्य होता है। लेकिन यह इन बातों का समय नहीं है। आओ, प्याले उठायें और जीवन का सुख भोगें। इसके सिवा, और सब मिथ्या है।

वयोवृद्ध कोटा बड़ी गम्भीरता से बोलते थे। उन्होंने आज