डोरियन-अगर मैं आपका आशय ठीक समझ रहा हूँ तो आपने यह कहा है कि जिस मार्ग को खोज निकालने में यूनान के तत्वज्ञानियों को सफलता नहीं हुई, उसे ईसू ने किन साधनों द्वारा पा लिया? किन साधनों के द्वारा वह मुक्तिज्ञान प्राप्त कर लिया जो प्लेटो आदि आत्मदर्शी महापुरुषों को न हो सका।
ज़ेनाथेमीज़-महाशय डोरियन, क्या यह बार-बार बतलाना पड़ेगा कि बुद्धि और तर्कविद्या प्राप्ति के साधन हैं, किन्तु पराविद्या आत्मोल्लास द्वारा ही प्राप्त होसकती है। प्लेटो, फ्रीसागोरस, अरस्तू आदि महात्माओं में अपार बुद्धि-शक्ति थी, पर वह ईश्वर की उस अनन्य भक्ति से वंचित थे जिसमें ईसु शराबोर थे। उनमें वह तन्मयता न थी जो प्रभु मसीह में थी।
हरमोडोरस-ज़ेनाथेमीज़, तुम्हारा यह कथन सर्वथा सत्य है कि जैसे दूब ओस पीकर जीती और फैलती है, उसी प्रकार जीवात्मा का पोषण परम आनन्द द्वारा होता है। लेकिन हम इसके आगे भी जा सकते हैं, और कह सकते हैं कि केवल बुद्धि ही में परम आनन्द भोगने की क्षमता है। मनुष्य में सर्व प्रधान बुद्धि ही है। पंचभूतों का बना हुआ शरीर तो जड़ है, जीवात्मा यद्यपि अधिक सूक्ष्म है, पर वह भी भौतिक है, केवल बुद्धि ही निर्विकार और अखण्ड है। जब यह भवनरूपी शरीर से प्रस्थान करके जो अकस्मात निर्जन और शून्य हो गया हो-आत्मा के रमणीक उद्यान में विचरण करती हुई, ईश्वर में समाविष्ट हो जाती है तो वह पूर्व निश्चित मृत्यु या पुनर्जन्म के आनन्द उठाती है, क्योंकि जीवन और मृत्यु में कोई अन्तर नहीं। और उस अवस्था में उसे स्वर्गीय पावित्र्य मे मग्न होकर परम आनन्द और सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाता है। वह उस ऐक्य में प्रविष्ट होजाती है जो सर्वव्यापी है। उसे परमपद या सिद्धि प्राप्त हो जाती है।