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अहङ्कार


चारी शासक जो अपनी ही इच्छा के अनुसार राज्य का संचालन करता है, सम्भवतः कभी-कभी प्रजा को घोर संकट में डाल देता है, लेकिन अगर वह प्रजामतके अनुसार शासन करता है तो फिर उसके विष का मंत्र नहीं, वह ऐसा रोग है जिसकी औषधि नहीं। रोमराज्य के शस्त्र बल द्वारा संसार में शांति स्थापित होने से पहले, वही राष्ट्र सुखी और समृद्ध थे जिनका अधिकार कुशल विचारशील स्वेच्छाचारी राजाओं के हाथ मे था।

हरमोडोरस-महाशय कोटा, मेरा तो विचार है कि सुव्यवस्थित शासनपद्धति केवल एक कल्पित वस्तु है, और हम उसे प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकते, क्योंकि यूनान के लोग भी, जो सभी विषयों में इतने निपुण और दक्ष थे, निर्दोष शासन प्रणाली का आविर्भाव न कर सके। अतएव इस विषय में हमें सफल होने की कोई आशा भी नहीं। हम अनतिदूर भविष्य में उसकी कल्पना नहीं कर सकते। निर्भ्रान्त लक्षणों से प्रगट हो रहा है कि संसार शीघ्र ही मूर्खता और बर्बरता के अन्धकार में मग्न हुआ चाहता है। कोटा, हमें अपने जीवन मे, इन्हीं आँखों से, बड़ी-बड़ी भयंकर दुर्घटनायें देखनी पड़ी हैं। विद्या, बुद्धि और सदाचरण से जितनी मानसिक सान्त्वनायें उपलब्ध हो सकती हैं उनमें अब जो शेष रह गया है वह यही है कि अधःपतन का शोक-दृश्य देखें।

कोटा-मित्रवर, यह सत्य है कि जनता की स्वार्थपरता और असभ्य म्लेच्छों की उद्दण्डता, नितान्त भयंकर सम्भावनाये हैं, लेकिन यदि हमारे पास सुदृढ़ सेना, सुसंघटित नाविक शक्ति और प्रचुर धन बल हो तो-

हरमोडोरस-वत्स, क्यों अपने को भ्रम में डालते हो? यह मरणासन्न साम्राज्य म्लेच्छोंके पशुबल का सामना नहीं कर