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अहङ्कार

यश गाया । और वह अंधकार का गीदड़, वह दुर्गन्धमय राक्षस, जो इन सभी दुरात्माओं का गुरू घन्टाल था, वह पापी मार्कस परियन खुदी हुई क़ब्र की भाँति मुँह खोल रहा था। प्रिये, तूने इन विष्यामय गोवरैलों को अपनी ओर रेंग कर आते औरों अपने को उनके गन्दे स्पर्श से अपवित्र करते देखा है । तूने औरों को पशुओं की भाँति अपने गुलामों के पैरों के पास सोते देखा है, तूने उन्हें पशुओं की भाँति उसी फ़र्श पर संभोग करते देखा है जिस पर वह मदिरा से उन्मत्त होकर कै कर चुके थे ! तूने एक मन्दबुद्धि, सठियाये हुए बुड्ढे को, अपना रक्त वहाते देखा है जो उस शराब से भी गन्दा था जो इन भ्रष्टाचारियों ने बहाई थी। ईश्वर को धन्य है ! तूने कुवासनाओं का दृश्य देखा और तुझे विदित हो गया कि यह कितनी घृणोत्पादक वस्तु है। थायस, थायस, इन कुमार्गी दार्शनिकों की भ्रष्टताओं को याद कर, और तब सोच कि लू भी उन्हीं के साथ अपने को भ्रष्ट करेगी? इन दोनों कुलटाओं के कटाक्षों को, हाव भाव को, घृणित संकेतों को याद कर, वह कितनी निर्लज्जता से हँसती थीं, कितनी बेहयाई से लोगों को अपने पास बुलाती थीं और तब निर्णय कर कि तू भी उन्हीं के सहा अपने जीवन का सर्वनाश करती रहेगी। ये दार्शनिक पुरुष थे जो अपने को सभ्य कहते हैं, जो अपने विचारों पर गर्व करते हैं, पर इन वेश्याओं पर ऐसे गिरे पड़ते थे जैसे कुत्ते हड्डियों पर गिरें!

थायस ने रात को जो कुछ देखा और सुना था उससे उसका हृदय ग्लानित और लज्जित हो रहा था। ऐसे दृश्य देखने का उसे यह पहला ही अवसर न था, पर आज का-सा असर उसके मन पर कभी न हुआ था। पापनाशी की सदोत्तेजनाओं ने उसके सद्भावों को जगा दिया था। कैसे हृदयशून्य लोग हैं जो,स्त्री को अपनी वासनाओं का खिलौना मात्र समझते हैं ! कैसी स्त्रियाँ हैं