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अहङ्कार

पीरही थीं। उसके गालों पर हवा के झोंके न जाने किधर से आकर लगते थे। सहसा मैदान के एक कोने पर थायस के मकान का छोटा-सा द्वार देखकर और यह याद करके कि जिन पत्तियों की शोभा का वह आनन्द उठा रहा था वह थायस के बाग़ के पेड़ों की हैं, उसे सब अपावन वस्तुओं की याद आ गई जो वहाँ की वायु को, जो आज इतनी निर्मल और पवित्र थी, दूषित कर रही थो, और इसकी आत्मा को इतनी वेदना हुई कि उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।

उसने कहा—थायस, हमें यहाँ से बिना पीछे मुड़ कर देखे हुए भागना चाहिए। लेकिन हमें अपने पीछे तेरे संस्कार के साधनों, साक्षियों और सहयोगियों को भी न छोड़ना चाहिए; वह भारी- भारी परदे, वह सुन्दर पलंग, वह क़ालीने, वह मनोहर चित्र और मूर्तियाँ, वह धूप आदि जलाने के स्वर्णकुण्ड, यह सब चिल्ला चिल्ला कर,तेरे पापाचरण की घोषणा करेंगे। क्या तेरी इच्छा है कि घृणित सामग्रियाँ, जिनमें प्रेतों का निवास है, जिनमें पापात्मायें क्रोध करता है मरुभूमि में भी मेरा पीछा करें, यही संस्कार वहाँ भी तेरी आत्मा को चंचल करते रहें? यह निरी कल्पना नहीं है कि मेजें प्राणघातक होती हैं, कुरसियाँ और गद्दे प्रेतों के यंत्र बनकर बोलते है, चलते फिरते हैं, हवा में उड़ते हैं, गाते हैं। उन समग्र वस्तुओं को, जो तेरी विलासलोलुपता के साथी हैं, मिटादे, । थायस ! एक क्षण भी विलम्ब न कर, अभी सारा नगर सो रहा है, कोई हलचल 'न' मचेगी, अपने गुलामों को हुक्म दे कि वह इस स्थान के मध्य मे एक चिता बनायें, जिस पर हम चेरे भवन की सारी सम्पदा की आहुति कर दें। उसी अग्निराशि में तेरे, कुसंस्कार जलकर भस्मीभूत हो जायें!

थायस ने सहमत होकर कहा—