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अहङ्कार

थायस मनमें सोच रही थी कि वकालत का अवश्य असर होगा और कम से कम यह मूर्ति तो बच जायगी। लेकिन पाप- नाशी बाज की भाँति झपटा, माली के हाथ से मुर्ति छीन ली, तुरत उसे चिता में डाल दिया और निदर्य स्वर से बोला—

जब यह निसियास की चीज़ है और उसने इसे स्पर्श किया है तो मुझसे इसकी सिफ़ारिश करना व्यर्थ है। उस पापी का स्पर्शमात्र समस्त विकारों से परिपूरित कर देने के लिए काफी है !

तब उसने चमकते हुए वस्त्र, भाँति-भाँति के आभूषण, सोने की पादुकायें, रलजटित कघियाँ, बहुमूल्य आइने, भाँति-भाँति के गाने बजाने की वस्तुयें, सरोद, सितार, वीणा, नाना प्रकार की फ़ानूसे, अचारों में उठा-उठा कर झोंकना शुरू किया। इस प्रकार कितना धन नष्ट हुधा इसका अनुमान करना कठिन है। इधर तो ज्वाला उठ रही थी, चिनगारियाँ उड़ रही थीं, चटाक पटाक की निरन्तर ध्वनि सुनाई देती थी, उधर हब्शी गुलाम इस विनाशक दृष्टि से उन्मत्त हो, तालियाॅ बजा बजाकर, और भीषण नाद से चिल्ला-चिल्ला कर नाच रहे थे। विचित्र दृश्य था, धर्मोत्साह का कितना भयंकर रूप!

इन गुलामों में से कई ईसाई थे। उन्होंने शीघ्र ही इस प्रकार का आशय समझ लिया और घरमें ईधन और आग लाने गये। औरों ने भी उनका अनुकरण किया क्योंकि यह सब दरिद्र थे और धन से घृणा करते थे, और धन से बदला लेने की उनमें स्वाभाविक प्रवृत्ति थी। जो धन हमारे काम नहीं आता, उसे नष्ट हो क्यों न कर डालें ! जो वस्त्र में पहनने को नहीं मिल सकते उसे जना ही क्यों न डालें ! उन्हें इस प्रवृत्ति को शांत करने का यह अच्छा अवसर मिला । जिन वस्तुओं ने हमें इतने दिनों चक जलाया है, उन्हें आज जना देंगे चिता तैयार हो रही थी और घर की