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वृद्धावस्था पास न आये, तो वह कुछ भय से, कुछ उसे लुब्ध करने के जिये उसके साथ संमोग करने को प्रस्तुत हो जाती है। यद्यपि पाप- नाशी की संयमशीलता उझे इस प्रलोभन का शिकार होने से बचा लेती है, तथापि थायस की यह निर्लज्जता कुछ अस्वाभाविक-सी प्रतीत होती है। वेश्यायें भी यों सबके साथ अपनी लाज नहीं खोया करती। उनमें भी आत्माभिमान की मात्रा होती है, विशेषतः जब वह थायस की भाँति विपुल-धन-सम्पन्ना हों।

पापनाशी के चरित्रचित्रण में भी जो बात खटकती है वह अनैसर्गिक विषयों का समावेश है। सव बह पायस का उद्धार करने के लिये इस्कन्द्रिया पहुॅचता है उस समय उसे एक स्वप्न दिखाई देता है, तो उसके स्वर्ग भए के सिद्धान्त को भ्रान्ति में डाल देता है। इसी भाॅति नम यह थायस को प्राश्रम में पहुंचा कर फिर अपने आश्रम में लौट पाता है तो उसकी कुटी में गीदरों की भरमार होने लगती है। एक और उदाहरण लीजिये। सब वह स्तम्भ पर बैठा हुना तपस्या करता है तो एक दिन उसके कानों में आवाज़ आती है, पापनाशी 'उठ और ईश्वर' की कीर्ति को उज्वल कर, बीमारों को अरोग्य प्रदान कर' इसके बाद वही आवाज़ उसे फिर स्तम्भ से नीचे उतरने को कहती है, किन्तु सीढ़ी द्वारा नहीं, बल्कि फांद कर। पापनाशी फाँदने की चेष्टा करता है तो उसके कानो में हँसी की आवाज़ आती है। वब पापनाशी भयभीत होकर चौंक पड़ता है। उसे विदित हो जाता है कि शैतान मुझे परीक्षा में डाल रहा है। इन शंकायों का समाधान केवल इसी विचार से किया जा सकता है कि यह सब पापनाशी के बहकारमय हृदय के विचार थे जो यह रूप धारण करके उसकी आन्तरिक इच्छाओं और भावों को प्रगट करते थे। जो मनुष्य यह कहे कि—

'सद्पुरुषों की आत्मायें दुष्टों की आत्माओं से कहीं ज्यादा कलु- षित होती हैं, क्योंकि समस्त संसार के पाप उसमें प्रविष्ट होते हैं।'