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जो प्राणी ईश्वर से यह प्रार्थना करे कि—

'भगवान् मुझ पर प्राणिमात्र की कुवासनाओं का भार रख दीजिये, मैं उन सबों का प्रायश्चित करूॅगा।'

उसके सगर्व अन्तःकरण की दुरिच्छायें दुस्स्वप्नों का रूप धारण कर ले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।

भाषा के सम्बन्ध में कुछ कहना व्यर्थ है। एक तो यह अनुवाद का अनुवाद है, दूसरे फ्रेंच जैसी समुन्नत भाषा की पुस्तक का, और फिर अनुवादमा भी वह प्राणी है जो इस काम में अभ्यस्त मही, तिस पर भी दो-तीन स्थलों पर पाठकों को लेखक की प्रखर लेखनी की कुछ झलक दिखाई देगी। निसियाल ने थायस से विदा लेते समय कितनी ओजस्विनी और मर्मस्पर्शी भाषा में अपने भावों को प्रकट किया है! औरपापनाशी के उस समय के मनोद्गार जब उसे थायस के मरने की खबर मिलती है इतमे चोटीले हैं कि विना वृदय को थासे उन्हें पढ़ना कठिन है!

इन चन्द शब्दों के साथ हम इस पुस्तक को पाठकों की भेंट करते हैं। हमको पूर्व आशा है कि सुविज्ञ इस रसोधान का आनन्द उठायेंगे। हमने इसका अनुवाद केवल इसजिए किया है कि हमें यह पुस्तक सर्वांग सुन्दर प्रतीत हुई और हमें यह कहने में संकोच नहीं है कि इससे सुन्दर साहिल हमने अंग्रेज़ी में नहीं देखा। हम उन लोगों में हैं जो यह धारणा रखते हैं कि अनुवादों से भापा का गौरव चाहे न बढ़े, साहित्तिक ज्ञान अवश्य बढ़ता है। एक विज्ञान का कथन है कि 'थायस' ने अतीत काल पर पुनर्विजय प्राप्त कर लिया है और इस कथन में लेशमात्र भी अत्युक्ति नहीं है।

मूल पुस्तक में यूनान, मिश्र आदि देशों के इतने नामों और घट- नाओं का उल्लेख था कि उन्हें समझने के लिए अलग एक टीका लिखनी पड़ती। इसलिए हमने यथास्थान कुछ काट-छाँट कर दी है, पर इसका विचार रखा है कि पुस्तक के सारस्प में विघ्न न पड़ने पाये। 'पापनाशी'