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अहङ्कार

थायस ने कहा—मैंने इस आज्ञा को शिरोधार्य किया।

जब तक चारो भारतीय काने बैठ कर भाग झोंक रहे थे, हबशी गुलामों ने चिता में बड़े बड़े हाथीदाँत, आवनूस तथा सागौन के संदूक डाल दिये जो धमाके से टूट गये और उसमें से बहुमूल्य और रत्नजटित आभूषण निकल पडे । अलाव में से धुएँ के काले काले बादल उठ रहे थे। तब अनि जो अभी तक सुलग रही थी, इतना भीषण शब्द करके धधक उठी मानों कोई भयकर वनपशु गरज उठा, और ज्वाल-जिह्वा जो सूर्य्य के प्रकाश में बहुत धुंधली दिखाई देती थी, किसी राक्षस की भाँति अपने शिकार को निगलने लगी। ज्वाला ने उत्तेजित होकर गुलामों को भी उत्तेजित किया। वे दौड़ दौड़ कर भीतर से चीजे बाहर लाने लगे। कोई मोटी-मोटी क़ालीने घसीटे चला आता था, कोई वन के गट्ठर लिये दौड़ा आता था। जिन नकाबों पर सुनहरा काम किया हुआ था, जिन परदों पर सुन्दर वेलबूटे बने हुये थे सभी आग में झोंक दिये गये । अमि मुंह पर नकाब नहीं डालना चाहती और न उसे परदों से प्रेम है। वह भीषण और नग्न रहना चाहती है । तब लकडी के सामानों की बारी आई । भारी मेज, कुरसियाँ, मोटे मोटे गद्दे, सोने की पहियों से सुशोभित पलंग गुलामों से उठते ही न थे। तीन वलिष्ठ हब्शी परियों की मूर्तियाँ छाती से लगाये हुये जाये। इन मूर्तियों में एक इतनी सुन्दर थी कि लोग उससे स्त्री का सा प्रेम करते थे। ऐसा जान पड़ता था कि तीन जंगली बंदर तीन स्त्रियों को उठाये भागे जाते हैं। और जब यह तीनों सुन्दर नग्न मूर्तियाँ, इन दैत्यों के हाथों से छूट कर गिरी और टुकड़े टुकड़े हो गई, तो गहरी शोकध्वनि कानों में आई।

यह शोर सुनकर पड़ोसी एक एक करके जागने लगे, और आँखे मल मल कर खिड़कियों से देखने लगे कि यह धुआँ कहाँ