पृष्ठ:अहंकार.pdf/१६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४२
अहङ्कार

'जब वह चली जायगी वो नायिकाओं का पार्ट कौन खेलेगा?'

'इस क्षति की पूर्ति नहीं हो सकती।'

'उसका स्थान सदैव रिक्त रहेगा'।

'उसके द्वार बन्द हो जायेंगे तो जीवन का आनन्द हो जाता रहेगा।'

'वह इस्कन्द्रिया के गगन का सूर्य थी।'

इतनी देर में नगर भर के भिक्षुक, अपंगु लूले, लगड़े, कोढ़ी अंधे सब उस स्थान पर जमा हो गये और जली हुई वस्तुओं को टटोलते हुये बोले—

अब हमारा पालन कौन करेगा? उसके मेज का जूठन खाकर दो सौ अभागों के पेट भर जाते थे। उसके प्रेमीगण चलते समय हमें मुट्टियाँ भर पैसे रुपये दान कर देते थे।

चोर चकारों की भी बन आई। वह भी आकर इस भीड़ में मिल गये और शोर मचा-मचाकर अपने पास के आदमियों को ढकेलने लगे कि दंगा हो जाय और उस गोलमाल में हम भी किसी वस्तु पर हाथ साफ करें। यद्यपि बहुत कुछ जल चुका था, फिर भी इतना शेष था कि नगर के सारे चोर चंडाल अयाची हो जाते।

इस हलचल में केवल एक वृद्ध मनुष्य स्थिरचित्त दिखाई देता था। वह थायस के हाथों दूर देशों से बहुमूल्य वस्तुयें ला लाकर बेचता था और थायस पर उसके बहुत रुपये आते थे। वह सब की बातें सुनता था, देखता था कि लोग क्या करते हैं। रह -रहकर डाढ़ी पर हाथ फेरता था और मनमें कुछ सोच रहा था। एकाएक उसने एक युवक को सुन्दर वन्न पहने पास खड़े देखा। उसने युवक से पूछा—

तुम थायस के प्रेमियों में नहीं हो ?