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अहङ्कार

में विधर्मियों के बीच गया, तो तेरे लिए, अपने लिए नहीं । क्या यह अन्याय नहीं है कि मुझे उन कर्मों का दण्ड दिया जाय जो मैंने तेरा माहात्म्य बढ़ाने के निमित्त किये हैं ? प्यारे मसीह, आप इस घोर अन्याय से मेरी रक्षा कीजिये। मेरे दाता, मुझे बचाइये। देह मुझ पर जो विजय प्राप्त न कर सकी, वह विजयकीर्ति उसकी छाया को न प्रदान कीजिये। मैं जानता हूॅ कि मैं इस समय महासंकटों में पड़ा हुआ हूँ। मेरा जीवन इतना शकामय कभी न था। मैं जानता हूॅ और अनुभव करता हूॅ कि स्वप्न में प्रत्यक्ष से अधिक शक्ति है और यह कोई आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि स्वप्न स्वय आत्मिक वस्तु होने के कारण भौतिक वस्तुओं से उच्चतर है । स्वप्न वास्तव में वस्तुओं की आत्मा है । प्लेटो यद्यपि मूर्विवादी या तथापि उसने विचारों के अस्तित्व को स्वीकार किया है । भगवन्, नर-पिशाचों के उस भोज में जहाँ तू मेरे साथ था, मैंने मनुष्यों को—वह पापमलिन अवश्य थे, किन्तु कोई उन्हें विचार और बुद्धि से रहित नहीं कर सकता—इस बात पर सह- मत होते सुना कि योगियों को एकान्त, ध्यान और परम आनन्द की अवस्था में प्रत्यक्ष वस्तुएँ दिखाई देती हैं। पर पिता, आपने अपने पवित्र प्रथ मे स्वयं कितनी ही बार स्वप्न के गुणों को, और छाया-मूर्तियों की शक्तियों को, चाहे वह तेरी ओर से हो या तेरे शत्रु की ओर से, स्पष्ट और कई स्थानों पर स्वीकार किया है। फिर यदि मैं भ्राति में ना पड़ा तो मुझे क्यों इतना कष्ट दिया जा रहा है?

पहले पापनाशी ईश्वर से तर्क न करता था। वह निरापद भाव से उसके आदेशों का पालन करता था। पर अब उसमें एक नए भाव का विकास हुआ—उसने ईश्वर से प्रश्न और शंकायें करनी शुरू की, किन्तु ईश्वर ने उसे वह प्रकाश न दिखाया