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अहङ्कार

पापनाशी को देखकर उसने कहा—

भाई पापनाशी को नमस्कार करता हूँ । देखो, परम पिता कितना दयालु है; वह मेरे पास अपने रचे हुए पशुओं को भेजता है कि मैं उनके साथ उनका कीर्तिगान करूँ और हवा में उड़ने- वाले पक्षियों को देखकर उसकी अनन्त लीला का आनन्द उठाऊँ। इस कबूतर को देखो, उसकी गर्दन के बदलते हुए रंगों को देखो, क्या यह ईश्वर की सुन्दर रचना नहीं है ? लेकिन तुम तो मेरे पास किसी धार्मिक विषय पर बातें करने आये हो न ? यह लो, मै अपना डोल रखे देता हूँ और तुम्हारी बातें सुनने को तैयार हूँ।

पापनाशी ने वृद्ध साधु से 'अपनी इस्कन्द्रिया की यात्रा, थायस के उद्धार, वहाँ से लौटने-दिनों की दूषित कल्पनाओं और रातों के द्वास्वप्नों का सारा वृत्तान्त कहा सुनाया—उस रात के पापस्वप्न और गीदड़ों के झुंड की बात भी न छिपाई । और तब उससे पूछा—

पूज्य पिता, क्या आपका यह विचार नहीं है कि मुझे कहीं रेगिस्तान में शरण लेनी चाहिए, और ऐसी ऐसी असाधारण योग क्रियायें करनी चाहिए कि प्रेतराज भी चकित हो जायें ?

पालम संत ने उत्तर दिया—

भाई पापनाशी, मैं क्षुद्र पापी पुरुष हूँ, और अपना सारा जीवन बगीचे में हिरनों, कबूतरों और खरहों के साथ व्यतीत करने के कारण, मुझे मनुष्यों का बहुत कम ज्ञान है । लेकिन मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हारी दुश्चिन्ताओं का कारण कुछ और ही है। तुम इतने दिनों तक व्यावहारिक संसार मे रहने के बाद यकायक निर्जन शान्ति में आ गये हो। ऐसे आकस्मिक परिवर्तनों से आत्मा का स्वास्थ्य बिगड़ जाय तो आश्चर्य की बात नहीं । बंधुवर, तुम्हारी दशा उस प्राणी की-सी है जो एक ही क्षण में