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अहङ्कार

यद्यपि यह किसी को विश्वास न आयेगा, किन्तु वहां जितने आदमी मौजूद थे सबके सब बौखला उठे और रोगियों की भाँति कुसाचें खाने लगे। पडित और पुजारी, स्त्री और पुरुष सबके सब तले-ऊपर लोटने पोटने लगे। सभों के अंग अकड़े हुए थे, मुँह से फिचकुर बहता था, मिट्टी से मुट्टियाँ भर भर फाँकते और अनर्गल शब्द मुँह से निकालते थे।

पापनाशी ने शिखर पर से यह कुतूहल-जनक दृश्य देखा तो उसके समस्त शरीर में एक विप्लव-सा होने लगा। उसने ईश्वर से प्रार्थना की—

भगवन्, मैं ही छोड़ा हुआ बकरा हूॅ, और मैं अपने ऊपर इन सारे प्राणियों के पापों का भार लेता हूॅ, और यही कारण हे कि मेरा शरीर प्रेतों और पिशाचों से भरा हुआ है।

जब कोई रोगी चगा होकर जाता था तो लोग उसका स्वागत करते थे, उसका जलूस निकालते थे, बाजे बजाते, फूल उडाते उस उसके घर तक पहुॅचाते थे, और लाखों कठों से यह ध्वनि निकलती थी—

'हमारे प्रभु मसीह फिर अवतरित हुए !'

बैसाखियों के सहारे चलनेवाले दुवल गेगी जब आरोग्य- लाभ कर लेते थे तो अपनी वैसाखियाँ इसी स्तम्भ में लटका देते थे। हजारों बैसाखियाँ लटकती हुई दिखाई देती थीं और प्रति- दिन उनकी संख्या बढ़ती ही जाती थी। अपनी मुराद पानेवाली स्त्रियाँ फूल की माला लटका देती थीं । कितने ही यूनानी यानियों पापनाशी के प्रति श्रद्धामय दोहे अकित कर दिये । जो यात्री आता था वह स्तम्म पर अपना नाम अंकित कर देता या । अत- एव स्तम्भ पर जहाँ तक आदमी के हाथ पहुँच सकते थे, उस समय की समस्त प्रचलित लिपियों-लैटिन, यूनानी, मिस्त्री,