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अहंकार

का निमन्त्रण था। उस सम्भाषण को कथा का बड़ा अद्भुत और अलंकृत विस्तार किया गया। और जिन जिन महानुभावों ने यह रचना की उन्होंने स्वयं पहले उस पर विश्वास किया। कहा जाता था कि जब कोटा ने विषद तर्क-वितर्क के पश्चात सत्य को अंगीकार किया और प्रभु मसीह की शरण में आया तो एक स्वर्ग- दूत आकाश से उसके मुंह का पसीना पोछने आया। यह भी कहा जाता था कि कोटा के साथ उसके वैद्य और मन्त्री ने भी ईसाई धर्म स्वीकार किया ! मुख्य ईसाई संस्थाओं के अधिष्ठा- वानों ने यह अलौकिक समाचार सुना तो ऐतिहासिक घटनाओं में उसका उल्लेख किया । इतनी ख्यातिलाम के बाद यह कहना किंचित् मान भी अतिशयोक्ति न थी कि सारा संसार पापनाशो के दर्शनों के लिए उत्कंठित हो गया। प्राच्य और पाश्चात्य दोनों ही देशों के ईसाइयों की विस्मित आँखें उनकी ओर उठने लगीं। इटली के प्रधान नगरों ने उसके नाम अभिनंदन पत्र भेजे और रोम के कैसर कान्सदेनटाइन ने, जो ईसाई धर्म का पक्षपाती था, उसके पास एक पत्र भेजा । ईसाई दूत इस पत्र को बड़े आदर- सम्मान के साथ, पापनाशी के पास लाये। लेकिन एक रात को .जब यह नवजात नगर हिम की चादर ओढ़े सो रहा था, पाप- नाशी के कानों में यह शब्द सुनाई दिये-

'पारनाशी, तू अपने कर्मों से प्रसिद्ध, और अपने शब्दों से शक्तिशाली हो गया है। ईश्वर ने अपनी नीति को उज्ज्वल करने के लिए तुझे इस सर्बोच पद पर पहुंचाया है। उसने तुझे अलौकिक लीलाएँ दिखाने, रोगियों को प्रारोग्य प्रदान करने, नास्तिकों को समार्ग पर लाने, पापियों का उद्धार करने एरिग्न के मतानु. थाथियों के मुख में कालिमा लगाने, और ईसाई जगत् में शांति और सुख का सम्राज्य स्थापित करने के लिए नियुक्त किया है।'